1. प्रारम्भ
देश की ग्रामीण वित्तीय प्रणाली को एक ऐसी सुदृढ़ एवं सक्षम ऋण वितरण व्यवस्था की आवश्यकता है जो कृषि और ग्रामीण विकास की बढ़ती हुई विभिन्न ऋण जरूरतों को पूरा कर सके. ग्रामीण ऋण के संवितरण में सहकारी बैंक और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक दो महत्वपूर्ण संस्थान है.
नाबार्ड की स्थापना के समय से ही संस्थागत विकास विभाग इस संबंध में अग्रणी भूमिका निभाता रहा है और वह ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं से प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में जुड़ा रहा है. विभाग ने ऐसी कई परियोजनाएं और कार्यक्रम शुरू शुरू किए हैं जो दीर्घावधि आधार पर एक सुदृढ़ ग्रामीण वित्तीय इको-सिस्टम के विकास को प्रोत्साहित करते हैं. विभाग द्वारा ऐसी पहलें सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से भारत सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक और राज्य सरकारों के सहयोग से की जाती हैं.
2. विभाग के मुख्य कार्य
A. सहकारी बैंकों का विकास
विकास संबंधी पहलें
- भारत सरकार को ग्रामीण सहकारी संस्थाओं से संबधित नीतिगत मामलों में सहयोग देना.
- उचित रूप से आंकड़ों का संग्रह करते हुए सहकारी बैंकों की व्यवहार्यता का अनुप्रवर्तन करना और उसका विश्लेषण करके भारत सरकार तथा भारतीय रिजर्व बैंक को नीतिगत इनपुट प्रदान करना.
- भारत सरकार को दुर्बल बैंकों की स्थिति में सुधार लाने के लिए पुनर्पूंजीकरण/ पुनर्संरचना तथा अन्य सुधारात्मक उपायों द्वारा उपचारात्मक कदम उठाने में सहयोग देना.
- भारत सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक, संसदीय समितियों तथा विभिन्न अन्य एजेंसियों के लिए विभिन्न नीतिगत टिप्पणियां तैयार करना.
- अल्पावधि एवं दीर्घावधि सहकारी संस्थाओं की कार्यप्रणाली की समीक्षा करना.
- अल्पावधि ग्रामीण सहकारी ऋण ढांचे के लिए भारत सरकार के पुनरूद्धार पैकेज का कार्यान्वयन.
- सहकारी विकास निधि (सीडीएफ) का प्रबंधन एवं सीडीएफ के अंतर्गत सहकारी संस्थाओं को बुनियादी सुविधाएं विकसित करने तथा अन्य विभिन्न अनुमोदित कार्यकलापों के लिए सहायता प्रदान करना जिनमें सहकारी बैंकों एवं पैक्स कार्मिकों के प्रशिक्षण हेतु सहकारी प्रशिक्षण संस्थानों को सहायता शामिल है.
- सहकारी संस्थाओं से संबंधित विषयों पर शीर्षस्थ सहकारी ऋण संस्थाओं और राज्य सरकारों तथा भारत सरकार के साथ समन्वय करना.
- सहकारी समितियों के पंजीयकों और राज्य सहकारी बैंकों तथा राज्य भूमि विकास बैंकों के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों की आवधिक बैठकें आयोजित करना.
- भारत में सहकारिता आंदोलन के संबंध में सांख्यकीय विवरणों का प्रकाशन.
- सहकारी ऋण ढांचे के संबंध में विभिन्न विशेष अध्ययन करना.
मानव संसाधनों संबंधी पहलें
- सहकारी बैंकों को उनकी कार्य पद्धतियों में सुधार लाने, प्रौद्योगिकी के उन्नयन एवं मानव संसाधन विकास में सहायता देना .
- सहकारी बैंकों के वरिष्ठ एवं मध्यम स्तर के कार्यपालकों को व्यवसायिक दृष्टि से दक्ष बनाना .
- सहकारी बैंकों के कार्मिकों के प्रशिक्षण के लिए वित्तीय सहायता योजना (सॉफ्टकॉब) के अंतर्गत सहकारी बैंकों के कार्मिकों के प्रशिक्षण हेतु सहकारी बैंकों के प्रशिक्षण संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना.
- बैंकर ग्रामीण विकास संस्थान (बर्ड), लखनऊ, नाबार्ड के क्षेत्रीय कार्यालयों, आदि जैसे प्रतिष्ठित प्रशिक्षण संस्थानों के माध्यम से संगठनात्मक विकास पहलें (ओडीआई) करना.
- बैंकों की विकास कार्य योजनाओं के कार्यान्वयन और एमओयू के अंतर्गत उनके दायित्वों के निर्वहन का अनुप्रवर्तन.
- सहकारी बैंकों को उन्नत प्रबंधन सूचना प्रणाली, परिचालनों के कंप्यूटरीकरण, मानव संसाधनों के विकास, आदि के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना.
- विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा पैक्स का विकास, मध्यवर्ती सहकारी बैंकों/ राज्य सहकारी बैंकों में पैक्स विकास कक्षों की स्थापना तथा मानव संसाधन एवं प्रबंधन विकास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना.
- बर्ड, लखनऊ में स्थापित सेन्टर फॉर प्रोफेशनल एक्सलेंस इन कोऑपरेटिव्स (सी-पैक) को सहायता देना.
B. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का विकास
विकासात्मक पहलें
- अर्धवार्षिक आधार पर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कार्यनिष्पादन की समीक्षा.
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण और बाज़ार से पूंजी प्राप्त करने से संबंधित मामलों का निपटान.
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को सांविधिक लेखापरीक्षा के लिए सांविधिक लेखापरीक्षकों का पैनल उपलब्ध करना.
- सरकार को क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम में संशोधन संबंधी मामलों पर सलाह देना.
- मानव संसाधन विषयों पर संसदीय समिति और स्थायी परामर्शदात्री समिति से संबंधित मामलों का निपटान.
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों पर प्रकाशन निकालना.
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा गठित बिजिनेस एडवाइजरी कमिटी का अनुप्रवर्तन.
मानव संसाधन संबंधी पहलें
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के अध्यक्षों की समिति आधारित नियुक्ति.
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के निदेशक मंडल में नामित निदेशकों के नियुक्ति और अनुप्रवर्तन.
- सरकार को भर्ती संबंधी मामलों में मार्गदर्शन.
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की पदोन्नति प्रक्रिया का प्रबंधन - इन्स्टिट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सोनेल सेलेक्शन (आईबीपीएस) और कॉमन रिटन एक्ज़ामिनेशन (सीडब्ल्यूई).
- नियुक्ति एवं पदोन्नति नियमावली (एपीपीआर) और सेवा विनियमों संबंधी संशोधनों के मामलों का निपटान.
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में मानव संसाधन मुद्दों के विधिक मामलों का निपटान.
- स्टाफ विनियमन, एपीपीआर आदि के संबंध में आरटीआई,पीक्यू तथा वीआईपी संदर्भों का निपटान.
- संयुक्त परामर्शदात्री समिति की बैठकों का आयोजन.
3. विभाग की राष्ट्र स्तर पर विकास की बड़ी उपलब्धियां
A. पैक्स विकास कक्ष (पीडीसी)
पैक्स की क्षमता निर्माण और उनके सुदृढ़ीकरण के लिए मध्यवर्ती सहकारी बैंकों/ राज्य सहकारी बैंकों में पैक्स विकास कक्षों की स्थापना की गई है. 31 मार्च 2016 की स्थिति के अनुसार 94 जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों में कार्यरत पैक्स विकास कक्षों (पीडीसीज़) ने 20 राज्यों में 2198 पैक्स के परिचालन को चिन्हित किया है ताकि उन्हें प्रशिक्षण, सहायता, मार्गदर्शन, परिचयात्मक दौरों और अन्य समुचित सहयोग प्रदान करके सुदृढ़ बनाया जा सके. पैक्स विकास कक्षों की मदद से 1328 पैक्सों ने अपने व्यवसाय विकास की योजनाएं तैयार की हैं.
B. विकास कार्य योजना (डीएपी)/ सहमति ज्ञापन (एमओयू)
नाबार्ड ने अल्पावधि एवं दीर्घावधि सहकारी ऋण संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए वर्ष 1994-95 में संस्था विशिष्ट डीएपी/ एमओयू प्रणाली शुरू की थी ताकि इन संस्थाओं को दीर्घावधि आधार पर व्यवहार्य इकाइयां बनाया जा सके.
वर्ष 2014-15 में सभी राज्य सहकारी बैंकों को दो वर्षों की अवधि अर्थात् 2015-16 और 2016-17 के लिए समयबद्ध एवं अनुप्रवर्तनीय डीएपी पुनः बनाने के संबंध में नए दिशानिर्देश जारी किए गए थे ताकि सहकारी बैंक 31 मार्च 2015 तक 7 प्रतिशत तथा 31 मार्च 2017 तक 9 प्रतिशत सीआरएआर, जैसा कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित किया गया है, प्राप्त करने एवं उसे बनाए रखने में समर्थ हों सकें
वर्तमान में सभी राज्य सहकारी बैंकों एवं मध्यवर्ती सहकारी बैंकों द्वारा दो वर्षों अर्थात् 2015-16 और 2016-17 के डीएपी तैयार किए गए हैं.
C. एसटीसीसीएस के लिए भारत सरकार का पुनरूद्धार पैकेज - सहकारी पुनरूद्धार एवं सुधार
भारत सरकार ने वर्ष 2014 में प्रो. ए वैद्यनाथन की अध्यक्षता में सहकारी ऋण संस्थाओं की समस्याओं का विश्लेषण करने एवं उनके पुनरूद्धार हेतु कार्ययोजना बनाने के लिए एक कार्यदल की नियुक्ति की.
वीसी -I की संस्तुतियों के आधार पर एक पुनरूद्धार पैकेज घोषित किया गया जिसमें निम्नलिखित को शामिल किया गया हैः
क. विधिक एवं संस्थागत सुधार
ख. प्रबंधन गुणवत्ता सुधारने के उपाय
ग. सिस्टम को स्वीकार्य स्तर तक सुदृढ़ बनाने के लिए वित्तीय सहायता
कार्यदल द्वारा संस्तुत पुनरूद्धार पैकेज के कार्यान्वयन हेतु सभी राज्यों में नाबार्ड को कार्यान्वयनकारी एजेंसी के रूप में पदनामित किया गया और उसे पैकेज को लागू करने के लिए राष्ट्र, राज्य और जिला स्तरों पर समर्पित श्रमशक्ति दी गई.
भारत सरकार के `9245.28 करोड़ के हिस्से के साथ पैकेज का कुल वित्तीय परिव्यय `13,596 करोड़ था.
25 राज्यों ने भारत सरकार और नाबार्ड के साथ सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर दिए है और 23 राज्यों ने पुनरुद्धार पैकेज कार्यान्वित कर दिया है.
D. प्रगति का अनुप्रवर्तन एवं प्रबंध सूचना प्रणाली
विभाग द्वारा ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं की स्थिति का सहकारी ऋण ढांचे में बैंकों द्वारा आंकड़े प्रस्तुत करने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म इंश्योर के माध्यम नियमित रूप से अनुप्रवर्तन किया जाता है.
4. चालू परियोजनाएं / योजनाएं-
A. सहकारी विकास निधि (सीडीएफ)
सीडीएफ की स्थापना नाबार्ड अधिनियम, 1981 की धारा 45 के प्रावधानों के अंतर्गत निदेशक मंडल द्वारा 2 फरवरी 1993 को आयोजित अपनी 69वीं बैठक में लिए गए निर्णय के आधार पर रू.10 करोड़ के प्रारंभिक कॉर्पस के साथ की गई थी. तत्पश्चात इस निधि का कॉपर्स नाबार्ड के वार्षिक लाभ से अंशदान करके बढ़ाया गया है.
सीडीएफ के उद्देश्यः
- संसाधन संग्रहण में चयनात्मक आधार पर सहकारी ऋण संस्थानों अर्थात् प्राथमिक कृषि ऋण समितियां (पैक्स) और कमजोर जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों (डीसीसीबीज़) के प्रयासों को सहायता देना.
- सहकारी ऋण संस्थाओं में बेहतर कार्य परिणाम प्राप्त करने और व्यवहार्यता में सुधार लाने तथा पद्धतियों एवं प्रक्रियाओं में सुधार लाने के लिए मानव संसाधन विकास.
- बेहतर प्रबंध सूचना प्रणाली (एमआईएस) तैयार करना.
- कार्यात्मक दक्षता में सुधार लाने के लिए विशेष अध्ययन करना.
- वर्ष 2015-16 के दौरान अल्पावधि एवं दीर्घावधि सहकारी ऋण संस्थाओं दोनों के विभिन्न स्तरों द्वारा आयोजित विभिन्न प्रोत्साहनमूलक कार्यक्रमों के लिए सीडीएफ के अंतर्गत `15.40 करोड़ की राशि संवितरित की गई है (संचयी राशि `140.66 करोड़).
B. सेंटर फॉर प्रोफेशनल एक्सेलेंस इन कोऑपरेटिव्स (सी-पेक)
नाबार्ड ने जीआईजेड़ के सहयोग से एसटीसीसीएस में सहकारी प्रशिक्षण संस्थाओं (सीटीआई) को सहायता और गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण देने के लिए बर्ड, लखनऊ में वर्ष 2009 में सेंटर फॉर प्रोफेश्नल एक्सेलेंस इन कोऑपरेटिव्स (सी-पेक) की स्थापना की थी.
31 मार्च 2016 को सी-पेक की कुल सदस्यता 5,605 है जिसमें 41 सीटीआई, 162 जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक, 18 राज्य सहकारी बैंक, 4,862 पैक्स और 522 व्यक्ति शामिल हैं और कुल कॉर्पस `2.18 करोड़ है.
संपर्क जानकारी
श्री एन. पी. मोहपात्रा
मुख्य महाप्रबंधक
संस्थागत विकास विभाग
नाबार्ड
प्लॉट सं.सी-24/'जी', बांद्रा-कुर्ला काप्लेक्स, पोस्ट बॉक्स 8121
बांद्रा (पूर्व), मुंबई- 400 051
दूरभाषः 022-26524843