जलवायु परिवर्तन का खतरा आज की तारीख में दुनिया के दरवाजे पर दस्तक दे चुका है. सारी दुनिया के लोगों की जिंदगी इससे प्रभावित है. खेती, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका के लिए तो यह बहुत बड़ी चुनौती है. मार्च 2014 में जलवायु परिवर्तन पर विभिन्न देशों की सरकारों के पैनल ने अपनी 5वीं रिपोर्ट में साफ-साफ बताया है कि जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक दुष्प्रभाव सबसे ज्यादा गरीबों, हाशिए पर जी रहे लोगों और ग्रामीण समुदायों पर पड़ने वाला है. इन कमजोर वर्गों के लिए जलवायु परिवर्तन ‘जोखिम को कई गुना बढ़ा देने वाला’ होता है और विद्यमान सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय चुनौतियां और कठिन हो जाती हैं.
जहां जलवायु परिवर्तन से पूरा विश्व प्रभावित होता है, वहीं भारत जैसे देश अधिक प्रभावित होते हैं जहां आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा खेती पर निर्भर करता है और खेती मौसमी मानसून पर निर्भर करती है. जलवायु परिवर्तन के बढ़ते वैश्विक खतरे के साये में तेज आर्थिक वृद्धि को बनाए रखना भारत के लिए चुनौती है. भारत ने पहले ही वैश्विक जलवायु परिवर्तन की समस्या को दूर करने में सहयोग की प्रतिबद्धता प्रकट की है और भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चिंताओं को दूर करने को उच्च प्राथमिकता दी है.
जलवायु परिवर्तन एक जटिल नीतिगत मुद्दा है जिसके महत्त्वपूर्ण वित्तीय निहितार्थ हैं. जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को दूर करने के सभी कार्यों और समाधानों में अंतत: लागत आती है. अनुकूलन और शमन परियोजनाओं को डिजाइन करने के लिए विकासशील देशों को निधीयन अनिवार्य है.