1. आरम्भ
कृषि क्षेत्र विकास विभाग (एफएसडीडी) नाबार्ड के पूर्व ‘विकास नीति विभाग-कृषि क्षेत्र’ से बनाया गया था.
विभाग का उद्देश्य निम्नलिखित को ध्यान में रखते हुए कृषि क्षेत्र के विविध नए प्रयासों का कार्यान्वयन करना हैः
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन
- ग्रामीण वित्त संस्थाओं द्वारा आधार स्तरीय ऋण प्रवाह में वृद्धि
- वृद्धिशील कृषि उत्पादन और उत्पादकता का संवर्धन
- ग्रामीण रोजगार का सृजन
- ऋण और अनुदान के माध्यम से ग्रामीण निर्धनों के जीवन स्तर का उन्नयन
एफएसडीडी निम्नलिखित निधियों का प्रबंधन करता है:
- कृषि क्षेत्र संवर्धन निधि (एफएसपीएफ)
- वाटरशेड विकास निधि (डब्ल्यूडीएफ)
- आदिवासी विकास निधि (टीडीएफ)
- उत्पादक संगठन विकास निधि (पीओडीएफ)
- उत्पादक संगठन विकास और उत्थान समूह निधि (प्रोड्यूस फंड)
2. विभाग के प्रमुख कार्य:
- कृषि क्षेत्र संवर्धन निधि (एफएसपीएफ)
कृषि क्षेत्र संवर्धन निधि (एफएसपीएफ) का सृजन पूर्व की दो निधियों अर्थात् कृषि नवोन्मेष और संवर्धन निधि (एफआईपीएफ) तथा कृषक प्रौद्योगिकी अंतरण निधि (एफटीटीएफ) का समामेलन कर 26 जुलाई 2014 को किया गया था. यह निधि नवोन्मेषी और संभाव्य अवधारणाओं/ परियोजनाओं के संवर्धन तथा कृषि और सहबद्ध क्षेत्रों में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी के अंतरण पर ध्यान केंद्रित करती है.
- वाटरशेड विकास निधि (डब्ल्यूडीएफ)
नाबार्ड 1990 के दशक के दौरान भारत में इंडो-जर्मन वाटरशेड विकास कार्यक्रम (आईजीडब्ल्यूडीपी) के प्रारंभ से वाटरशेड विकास परियोजनाएं कार्यान्वित करता आ रहा है. सहभागितामूलक वाटरशेड विकास की अवधारणा और कार्यविधि उत्पादकता तथा उत्पादन में वृद्धि करने एवं ग्रामीण समुदाय की आजीविका की सुरक्षा में सुधार लाने में सफल पहल सिद्ध हुई है.
देश के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में इस पहल का अनुकरण करने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री ने वर्ष 1999-2000 के बजट भाषण में नाबार्ड में वाटरशेड विकास निधि निर्मित करने की घोषणा की थी. वाटरशेड विकास निधि में कृषि मंत्रालय, भारत सरकार तथा नाबार्ड में से प्रत्येक द्वारा `100 करोड़ का अंशदान किया गया है.
- आदिवासी विकास निधि (टीडीएफ)
नाबार्ड आदिवासी परिवारों तथा उनसे संबंधित संवर्धनात्मक गतिविधियों, इत्यादि के लिए सहायता प्रदान करने वाली एजेंसियों को पुनर्वित्त की रियायती दरों, अलग से ऋण की व्यवस्था के माध्यम से आदिवासी विकास को सहयोग देता रहा है. तथापि, आदिवासी आजीविका की संधारणीयता नाबार्ड के लिए चिंता की मुख्य विषय रही है.
आदिवासी विकास कार्यक्रमों के सफल अनुभव के आधार पर नाबार्ड ने पूरे देश में वाड़ी मॉडल की पुनरावृत्ति से संबंधित एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम प्रारम्भ किया है. इस दिशा में, नाबार्ड ने अपने 2003-04 के लाभ में से ₹50 करोड़ की राशि से आदिवासी विकास निधि की स्थापना की थी. पिछले कुछ वर्षों में इस निधि की राशि में वृद्धि हुई है और 01.04.18 की स्थिति के अनुसार उपलब्ध राशि ₹1080.50 करोड़ है. टीडीएफ़ के अंतर्गत सभी परियोजनाओं का कार्यान्वयन राज्य सरकारों, कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके), गैर- सरकारी संगठनों और कॉर्पोरेट्स की भागीदारी में किया जाता है. इस कार्यक्रम के अंतर्गत आदिवासियों की जीविका में सुधार लाने के लिए कृषीतर, कृषि, अनुषंगी गतिविधियों, रेशम पालन, मधुमक्खी पालन के साथ-साथ “वाडी” मॉडल के नाम से लोकप्रिय व्यापक आदिवासी विकास कार्यक्रम का कार्यान्वयन किया जा रहा है.
- कृषक उत्पादक संगठनों का संवर्धन और विकास
प्राइमरी प्रोड्यूसर्स अर्थात किसानों, दुग्ध उत्पादकों, मछुआरों, बुनकरों, ग्रामीण कारीगरों, शिल्पकारों इत्यादि द्वारा गठित उत्पादक संगठन विधिक संस्थाएं हैं. छोटे उत्पादकों को कृषि मूल्य शृंखला से जोड़कर उत्पादकों की निवल आय में वृद्धि करने के लिए उत्पादक सगठन को एक प्रभावी साधन माना गया है.
नाबार्ड दो निधियों के माध्यम से उत्पादक संघों को वित्तीय और विकासात्मक सहयोग प्रदान करता है:
- उत्पादक संगठन विकास निधि (पीओडीएफ)
उत्पादक संगठनों की महत्ता को ध्यान में रखते हुए इन संगठनों को तीन स्तरों अर्थात् ऋण सहायता, क्षमता निर्माण एवं बाजार संयोजन से संबन्धित सहायता प्रदान करने के लिए नाबार्ड ने 2011 में ''उत्पादक संगठन विकास निधि'' के नाम से एक विशेष निधि की स्थापना की. 01 अप्रैल 2011 से नाबार्ड के लाभ में से `100 करोड़ की सीमा मंजूर करने के लिए `50 करोड़ की प्रारंभिक समूह निधि के साथ पीओडीएफ सृजित किया गया था.
- उत्पादक संगठन विकास और उत्थान समूह निधि (प्रोड्यूस निधि)
अगले दो वर्षों के दौरान 2000 कृषक उत्पादक संगठनों के गठन के लिए वर्ष 2014-15 में भारत सरकार द्वारा नाबार्ड में `200 करोड़ की प्रोड्यूस निधि सृजित की गई थी. प्रोड्यूस निधि का उद्देश्य उभरते संगठनों की प्रारंभिक वित्तीय जरूरतों को पूरा करना है जिससे बाद में वे नई कारोबारी गतिविधियों के लिए वित्तीय संस्थाओं से ऋण प्राप्त करने में समर्थ हो सकें.
3. विभाग की प्रमुख उपलब्धियां
कृषि क्षेत्र संवर्धन निधि (एफएसपीएफ)
- वर्ष के दौरान, 5016 नए कृषक क्लब मंजूर किए गए जिससे क्लबों की संचयी संख्या 1.47 लाख हो गई. कृषक क्लब गांव में किसानों का एक आधार स्तरीय अनौपचारिक फोरम होता है.
- वर्ष 2015-16 के दौरान `1.08 करोड़ के साथ 6,307 कृषकों को शामिल करते हुए 202 परिचय कार्यक्रम मंजूर किए गए. इस कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य के अंदर और बाहर एक्सपोजर दौरों के लिए किसानों (सामान्यतया 20 की टीम के लिए) 100 प्रतिशत अनुदान सहायता प्रदान की जाती है.
- वर्ष 2015-16 के दौरान `7.92 करोड़ के कुल संवितरण के साथ 242 विस्तृत परियोजना रिपोर्टें (डीपीआर) मंजूर की गई थीं तथा वर्ष के दौरान इस निधि के अंतर्गत विभिन्न नई और चालू परियोजनाओं के लिए अनुदान के रूप में `24.91 करोड़ की राशि संवितरित की गई थी.
वाटरशेड विकास निधि (डब्ल्यूडीएफ)
वाटरशेड विकास कार्यक्रम ग्राम वाटरशेड समितियों, स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) और संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी), गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ), कारपोरेट निकायों, राज्य सरकारों के संबंधित विभागों इत्यादि को शामिल कर सहभागितामूलक अवधारणा के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है. यह कार्यक्रम प्रमुख सूखा प्रवण राज्यों पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित करता है, जैसे:
नाबार्ड द्वारा कार्यान्वित वाटरशेड परियोजनाओं/कार्यक्रमों की राज्य-वार भौतिक और वित्तीय स्थिति
कार्यक्रम
|
परियोजनाओं
की संख्या
|
पूर्ण
हुई परियोजनाओं की संख्या
|
क्षेत्र (लाख हे.)
|
मंजूर
राशि (` लाख)
|
जारी की गई राशि
(` लाख)
|
आईजीडब्ल्यूडीपी
|
गुजरात
|
35
|
0
|
37587
|
3835
|
3386
|
महाराष्ट्र
|
220
|
205
|
223900
|
20381
|
19167
|
राजस्थान
|
35
|
5
|
34601
|
4038
|
3775
|
तेलंगाणा
|
36
|
36
|
41634
|
4901
|
4886
|
उप-जोड्र
|
326
|
246
|
337722
|
33155
|
31214
|
प्रधान
मंत्री पैकेज
|
आंध्र
प्रदेश
|
166
|
154
|
180000
|
19507
|
17679
|
कर्नाटक
|
132
|
109
|
156210
|
14371
|
12767
|
केरल
|
136
|
135
|
88423
|
12115
|
10980
|
महाराष्ट्र
|
72
|
72
|
171860
|
17158
|
13665
|
तेलंगाणा
|
258
|
203
|
289399
|
29496
|
25142
|
उप-जोड्र
|
764
|
673
|
885892
|
92647
|
80232
|
वाटरशेड
विकास निधि
|
आंध्र
प्रदेश
|
14
|
0
|
20396
|
1491
|
729
|
बिहार
|
5
|
0
|
555
|
63
|
32
|
छत्तीसगढ़
|
60
|
17
|
46197
|
4560
|
3514
|
गुजरात
|
20
|
3
|
12855
|
1038
|
744
|
हरियाणा
|
2
|
0
|
341
|
46
|
33
|
हिमाचल
प्रदेश
|
8
|
1
|
10911
|
666
|
411
|
जम्मू
|
1
|
0
|
1003
|
133
|
51
|
झाररखंड
|
26
|
8
|
23000
|
1552
|
1304
|
कर्नाटक *
|
87
|
65
|
83247
|
5872
|
5305
|
कोलकाता
|
39
|
14
|
29148
|
1564
|
1258
|
मध्य प्रदेश
|
21
|
1
|
27113
|
972
|
415
|
महाराष्ट्र
|
49
|
0
|
27845
|
2228
|
1557
|
ओडिशा
|
88
|
10
|
58436
|
6434
|
4070
|
राजस्थान
|
36
|
8
|
17957
|
1161
|
809
|
तमिलनाडु *
|
159
|
38
|
145370
|
11253
|
7664
|
उत्तर
प्रदेश
|
74
|
6
|
11506
|
1206
|
764
|
उत्तराखंड
|
10
|
0
|
8383
|
534
|
380
|
उप-जोड़
|
699
|
171
|
524263
|
40773
|
29040
|
आईडब्ल्यूडीपी
|
79
|
77
|
80000
|
6000
|
5500
|
केडीपीपी
|
10
|
10
|
10000
|
350
|
330
|
कुल
जोड़
|
1878
|
1177
|
172925
|
146316
|
आदिवासी विकास निधि (टीडीएफ)
• 28 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में मंजूर परियोजनाओं की कुल संख्या – 712
• लाभार्थी आदिवासी परिवारों की संख्या – 521292
• 31.03.2018 तक टीडीएफ़ से मंजूर राशि - ₹2120.70 करोड़
• 31.03.2018 तक संवितरित राशि - ₹1461.98 करोड़
कृषक उत्पादक संगठनों का संवर्धन और विकास
प्रोड्यूस निधि के अंतर्गत 2,173 एफपीओ के संवर्धन और संपोषण के लिए 785 उत्पादक संगठन संवर्धन संस्थाओं (पीओपीआई) को `193.90 करोड़ की अनुदान सहायता मंजूर की गई है.
31 मार्च 2016 तक विभिन्न विधान/ कानूनी रूपों के अंतर्गत 1,155 एफपीओ पंजीकृत हुए हैं. एफपीओ का संवर्धन करने के लिए पीओपीआई को आवश्यक प्रशिक्षण तथा सहयोग देने के लिए 17 संसाधन सहायता एजेंसियों (आरएसए) की सेवा ली जा रही है.
31 मार्च 2016 तक 2,469 पैक्स/ प्राथमिक सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों एवं 208 उत्पादक संगठनों को समेकित रूप से क्रमश: `690.35 करोड़ तथा `447.71 करोड़ की राशि मंजूर की गई है. मंजूरी के समक्ष ऋण सहायता के रूप में नाबार्ड द्वारा क्रमश: `400.91 करोड़ तथा `242.43 करोड़ संवितरित किए गए.
4. चालू परियोजनाएं और योजनाएं
कृषि क्षेत्र संवर्धन निधि (एफएसपीएफ)
- कृषक क्लब कार्यक्रम
- नई प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए एक्सपोजर कार्यक्रम
- डीपीआर परियोजनाएं
वाटरशेड विकास निधि (डब्ल्यूडीएफ)
- इंडो-जर्मन वाटरशेड विकास कार्यक्रम (आईजीडब्ल्यूडीपी)
- आपदाग्रस्त जिलों के लिए डब्ल्यूडीएफ के अंतर्गत प्रधानमंत्री का पैकेज
- वाटरशेड विकास निधि – गैर-आपदाग्रस्त जिले
- वाटरशेड परियोजनाओं में सीएसआर निधियों का समामेलन
- वाटरशेड क्षेत्रों में दीर्घकालिक विकास
- मिट्टी की गुणवत्ता बहाल करने संबंधी कार्यक्रमों का कार्यान्वयन और केएफडब्ल्यू एवं जीआईजेड, जर्मनी के माध्यम से खाद्य सुरक्षा हेतु मृदा की निम्न कोटि की गुणवत्ता में सुधार लाना (क्लाइमेट प्रूफिंग सोयल प्रोजेक्ट)
- महाराष्ट्र, अहमदनगर जिले के अकोला और संगमनेर तालुका में जलवायु परिवर्तन एडाप्टेशन परियोजना
- राजस्थान और तमिलनाडु में वाटरशेड परियोजनाओं को जलवायु रोधी बनाना
- वाटरशेड परियोजनाओं की वेब आधारित निगरानी.
5. अतिरिक्त सूचना
- उत्पादक संगठन मैनुअल
- वाटरशेड विकास निधि
- प्रभाव आकलन ओर अन्य प्रकाशन
नाबार्ड ने विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से पूर्ण हो चुकी वाटरशेड परियोजनाओं के प्रभाव और मध्यावधि मूल्यांकन अध्ययन कराए हैं. एजेंसियों द्वारा प्रस्तुत मूल्यांकन रिपोर्टे निम्नलिखित हैं:
- ग्रामीण प्रबंधन संस्थान (आईआरएमए), आणंद द्वारा महाराष्ट्र में प्रभाव मूल्यांकन
- केन्द्रीय शुष्क भूमि कृषि अनुसंधान संस्थान (सीआरआईडीए) द्वारा आंध्र प्रदेश में वाटरशेडों का मध्यावधि मूल्यांकन.
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), बेल्लारी द्वारा प्रधानमंत्री पैकेज कार्यक्रम का प्रभाव मूल्यांकन.
वाटरशेड परियोजनाओं में अन्य एजेंसियों के साथ अनुभव तथा सफल सहयोगों से संबंधित जानकारी के आदान-प्रदान के लिए निम्नलिखित प्रकाशन जारी किए गए हैं:
- वाटरशेड डाइजेस्ट – जनवरी 2016 अंक
- टचिंग लाइव्स – आईजीडब्ल्यूडीपी- एपी सफलता की कहानियां
संपर्क
श्री यू डी शिरसालकर
नाबार्ड, प्रधान कार्यालय
5वी मंजिल, ‘ऐ’ विंग
प्लॉट: सी-24, ‘जी’ ब्लॉक
बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स, बांद्रा (पू)
मुंबई – 400 051
दूरभाष: (+91) 022 – 26530094
फ़ैक्स: (+91) 022 – 26530009