आर्थिक विश्लेषण और अनुसंधान विभाग (डीईएआर) की स्थापना नाबार्ड, सरकार और अन्य हितधारकों के संगत मामलों पर उन्हें
नीतिगत और कार्योन्मुख अनुसंधान सहयोग उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गई. यह विभाग नाबार्ड के अधिदेश के अनुसरण में
कृषि और ग्रामीण विकास से जुड़ी ज्ञान-संचालित गतिविधियों में विशेषज्ञता रखता है.
इस विभाग की शक्ति व्यावसायिक
अर्थशास्त्रियों के संवर्ग और अन्य प्रतिष्ठित संस्थाओं के साथ पारस्परिक संबंध और सहयोग स्थापित करने के इसके सामर्थ्य
में निहित है.
विज़न
“नाबार्ड के एक उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले अनुसंधान खंड के रूप में विकसित होना जो अभिनव विचारों के सृजन, नीतिगत जानकारी के
विकास में सहयोग और नीतिगत विकल्पों के मूल्यांकन के लिए ऐसे अनुसंधान का संचालन और समन्वय करे जिससे संगठन के
उद्देश्यों की प्राप्ति में प्रबंधन को सहयोग मिले और अनुसंधान के ऐसे परिणाम सामने आएँ जो विशेष रूप से ग्रामीण ऋण के
आयामों तथा सामान्य रूप से समग्र ग्रामीण विकास की नाबार्ड की समझ में बेहतरी लाएँ.”
मूल कार्य
अ. अनुसंधान अध्ययनों के माध्यम से प्रबंधन को नीतिगत जानकारी उपलब्ध कराना:
- प्रधान कार्यालय और क्षेत्रीय कार्यालयों में संगठन के भीतर, विषय विशेषज्ञों के माध्यम से आंतरिक अध्ययन और अन्य
अनुसंधान गतिविधियाँ चलाना.
- राज्य/क्षेत्र-विशिष्ट मुद्दों पर प्रतिष्ठित अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से अनुसंधान संचालित करना.
आ. अनुसंधान और विकास निधि का प्रबंधन
Tनाबार्ड ने सामान्य रूप में निम्नलिखित प्रयोजनों के लिए अनुसंधान सहायता उपलब्ध कराने के लिए नाबार्ड अधिनियम, 1981 के
प्रावधानों के अनुसार अनुसंधान और विकास निधि की स्थापना की:
- अनुसंधान परियोजनाएँ/ अध्ययन
अनुसंधान और विकास निधि के तहत सहायता-प्राप्त अध्ययनों और अनुसंधान परियोजनाओं का लक्ष्य गहन अध्ययनों, अनुप्रयुक्त
अनुसंधान और नवोन्मेषी पद्धतियों के माध्यम से कृषि और ग्रामीण विकास की समस्याओं में अंतर्दृष्टि प्राप्त करना होता है.
वित्तीय वर्ष 2023-24 में, मंजूरी प्राप्त अध्ययनों में विभिन्न क्षेत्रों को शामिल किया गया जैसे कि ई-राष्ट्रीय कृषि
बाजार (ई-नाम) द्वारा कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) के मंडी बाजारों को जोड़ने में किसानों की भागीदारी और चुनौतियों
का आकलन करना, आपूर्ति श्रृंखला का आर्थिक विश्लेषण और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में एप्रीकॉट की फसलोपरांत क्षतियाँ,
ओडिशा में कृषि क्षेत्र में ऋण प्रवाह के निर्धारक और बाधाएं, आदि. वित्तीय वर्ष 2022-23 और वित्तीय वर्ष 2023-24 के
दौरान, निम्नलिखित अध्ययन रिपोर्ट पूर्ण की गईं:
- रिसर्च क्रॉनिकल
रिसर्च क्रॉनिकल डियर विभाग का एक द्विवार्षिक प्रकाशन है जिसका उद्देश्य नाबार्ड के अनुसंधान और विकास निधि के तहत
सहायता प्राप्त अध्ययनों के निष्कर्षों के अधिक पाठक संख्या, आउटरीच और बेहतर आंतरिकीकरण की सुविधा प्रदान करना है.
यह अनुसंधान लेखों का संकलन है जिसमें अध्ययन के प्रमुख अन्वेषक (पीआई) कार्यान्वयन योग्य नीतिगत सिफारिशों पर ध्यान
देने के साथ एक लेख के रूप में किए गए अनुसंधान के सार को संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं. रिसर्च क्रॉनिकल के
निम्नलिखित अंक अब तक जारी किए गए हैं:
- संगोष्ठी /सम्मेलन/वेबिनार आदि
हितधारकों के बीच अनुसंधान के निष्कर्षों के प्रसार के लिए संगोष्ठियाँ प्रायोजित करने के लिए भी अनुसंधान और विकास
निधि का उपयोग किया जाता है. संगोष्ठी के प्रकाशनों के लिए सहयोग देकर नाबार्ड कृषि और ग्रामीण विकास से जुड़ी
विषय-वस्तु पर अनुसंधान से निकली जानकारी को अनेक क्षेत्रों में प्रसारित करने और प्रासंगिक नीति निर्माण में सहायता
करने का प्रयास करता है.
- नाबार्ड चेयर यूनिट स्कीम
नाबार्ड चेयर यूनिट स्कीमको नाबार्ड की रुचि के क्षेत्रों में व्यापक अनुसंधान करने के उद्देश्य से प्रतिष्ठित
संस्थानों के साथ सदृढ़ अनुसंधान संबंध स्थापित करने के लिए बनाया गया है.
- सामयिक पत्र/ अनुसंधान और नीति की श्रृंखला
विभाग नाबार्ड के परिचालनों से संबंधित सामयिक मुद्दों पर सामयिक पत्र/ अनुसंधान और नीति शृंखला प्रकाशित करता है. इस
शृंखला के पत्रों में जलवायु परिवर्तन से लेकर कृषि मूल्य नीति, मूल्य शृंखला, स्टार्ट-अप, पशुधन आदि विषयों को
शामिल किया गया जिनमें विभिन्न मुद्दों, नीतिगत संगति, विहित पद्धतियों के उल्लेख के साथ-साथ नाबार्ड से संगत विषयों
पर भविष्य में लाए जाने वाले पत्रों के बारे में सुझावों को भी शामिल किया गया. लोगों तक व्यापक पहुँच के लिए इन्हें
हमारी वेबसाइट पर अपलोड किया गया है. इस शृंखला के अंतर्गत जारी पत्र निम्नानुसार हैं:
- नीति का संक्षिप्त विवरण
नैब नीति संक्षिप्त में अनुसंधान एवं विकास निधि के अंतर्गत नाबार्ड द्वारा किए गए अनुसंधान कार्यों के आधार
परसंक्षिप्त और स्पष्ट रूप में तैयार किए गए प्रमुख निष्कर्षों और नीतिगत सिफारिशों पर प्रकाश डाला गया है. नैब नीति
संक्षिप्त के निम्नलिखित मुद्दे अब तक जारी किए गए हैं:
- विद्यार्थियों का जुड़ाव
नाबार्ड 2005-06 से ही स्टूडेंट इंटर्नशिप स्कीम (एसआईएस) के माध्यम से विद्यार्थी समुदाय से जुड़ा रहा है. इस योजना
का उद्देश्य नाबार्ड के लिए उपयोगी और संगत अल्पावधि कार्य/परियोजनाएँ/अध्ययन विद्यार्थियों को सौंपना है. हमने
विद्यार्थी समुदाय के साथ हमारे जुड़ाव के दायरे को विस्तार किया है और इनमें नई योजनाएँ शामिल की हैं, नामतः (i)
नाबार्ड स्वर्ण पदक योजना और (ii) उत्कृष्ट डॉक्टरल थीसिस पुरस्कार पर नाबार्ड का उद्धवरण.
इ. नाबार्ड की वार्षिक रिपोर्ट
विभाग नाबार्ड की वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करता है जिसमें पिछले वित्तीय वर्ष में नाबार्ड द्वारा की गई प्रमुख
गतिविधियों का विस्तृत विवरण होता है. इसमें संबंधित वर्ष के लेखापरीक्षित लेखे और साथ ही प्रमुख सांख्यिकीय विवरण भी
शामिल होते हैं.
नाबार्ड वार्षिक रिपोर्ट 2024-25 एक संधारणीय भविष्य, समुदाय संचालित संस्थानों के माध्यम से समावेशी विकास, ग्रामीण
आधारभूत संरचना के वित्तपोषण, ग्रामीण वित्तीय संस्थानों (आरएफआई) की वित्तीय स्थिति, नाबार्ड उनकी प्रभावशीलता और
दक्षता में सुधार के लिए क्या कर रहा है, और कैसे शीर्ष संस्थान अपने स्टाफ सदस्यों, प्रक्रियाओं और नीतियों के माध्यम
से खुद को बदल रहा है, जबकि अपनी वित्तीय भलाई सुनिश्चित करते हुए, हमारे सहयोग पर एक नज़र डालता है. इस वर्ष की वार्षिक
रिपोर्ट में "भारत का ग्रामीण एमएसएमई क्षेत्र: आर्थिक विकास का इंजन" पर एक थीम अध्याय है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था में
ग्रामीण एमएसएमई की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है. यह ग्रामीण एमएसएमई की क्षेत्रीय विशेषताओं, चुनौतियों,
नीतिगत संदर्भ के साथ-साथ एमएसएमई क्षेत्र को समर्थन देने में नाबार्ड की पहल को प्रदर्शित करता है. नाबार्ड वार्षिक
रिपोर्ट 2024-25 के भाग-बी में सेबी (सूचीबद्धता दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकता) दिशानिर्देशों और वार्षिक लेखा-जोखा के
कारण कॉर्पोरेट अभिशासन पर एक खंड शामिल है. पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए
पूरी रिपोर्ट पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें.
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ई. प्रभाव रिपोर्ट
नाबार्ड की पहलों का बहुआयामी प्रभाव पड़ा है जिसने ग्रामीण भारत के लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है. डीयर
नाबार्ड की पहलों की व्यापकता और गहराई, और भारत के ग्रामीण परिदृश्य पर इसके ठोस प्रभाव को दर्शाने के लिए 'प्रभाव
रिपोर्ट' प्रकाशित करता है. दूसरा संस्करण - प्रभाव रिपोर्ट 2023-24, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) से
जुड़ा है और ट्रिपल बॉटम लाइन दृष्टिकोण, यानी लोग, प्लानेट और लाभ, के अंतर्गत हमारे सहयोग, पहलों और नवोन्मेषों के
जमीनी स्तर पर प्रभाव का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है. पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए
पूर्ण
रिपोर्ट के पठन
हेतु यहाँ क्लिक करें. -
रिपोर्ट में एक इंटरैक्टिव माइक्रोसाइट भी है जो उपयोगकर्ताओं को अधिक आकर्षक और सहज अनुभव प्रदान करती है. इम्पैक्ट
रिपोर्ट 2023-24 की माइक्रोसाइट देखने के लिए (Click here) यहां क्लिक करें.
उ. अर्थव्यवस्था की ट्रैकिंग
विभाग ने भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं से संबंधित सभी महत्वपूर्ण डाटा को एकत्र कर ग्रामीण
अर्थव्यवस्था ट्रैकर (आरईटी) नामक एक डाटा ट्रैकिंग प्रणाली विकसित की थी. इसे साप्ताहिक/मासिक बुलेटिनों ('इकोवॉच',
'इकोथिंक') के रूप में परिवर्तित किया गया है, जिनमें अर्थव्यवस्था की स्थिति के साथ ही ब्याज दर पर उतार-चढ़ाव,
मुद्रास्फीति, बॉन्ड यील्ड आदि के संबंध में दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाता है.
ऊ. समितियों/विशेषज्ञ कार्य समूहों को सहयोग
विभाग ग्रामीण संकट, मूल्य श्रृंखलाओं, किसानों की आय को दोगुनी करने (डीएफआई), किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ), कृषि
वृद्धि, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक स्टॉक एक्सचेंज जैसेव्यापक विषयों पर विभिन्न मंचों में चर्चा के लिए विभिन्न
समितियों को इनपुट प्रदान करता है. जिन समितियों में नाबार्ड की भूमिका होती है उन्हें विभाग और उनके अधिकारी
शैक्षणिक/सचिवीय सहायता भी प्रदान करते हैं.
ऋ. केंद्रीय पुस्तकालय
विभाग ने अपने कार्मिकों का ज्ञान बढ़ाने हेतु जर्नल, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और ऑन-लाइन सदस्यता के अलावा 25000 से अधिक
पुस्तकों के साथ प्रधान कार्यालय में एक सु-समृद्ध केंद्रीय पुस्तकालय संचालित किया है.
ए. आंतरिक अनुसंधान/अध्ययन/ प्रकाशन:
विभाग आंतरिक अनुसंधान संचालित करता है और भारतीय कृषि और ग्रामीण विकास से संबंधित मुद्दों पर रिपोर्ट प्रकाशित करता है.
(क) आंतरिक पुस्तिकाएँ
(ख) कार्य पत्र
(ग) रुरल पल्स
नाबार्ड अपने स्टाफ द्वारा किए गए विश्लेषणात्मक अनुसंधान पर आधारित एक संक्षिप्त नीति नुस्खा, रूरल पल्स प्रकाशित करता
है जो ज्ञान प्रसार के लिए एक मंच के रूप में भूमिका निभाता है. अब तक रूरल पल्स के 39 अंक प्रकाशित हो चुके हैं. इनमें
से कुछ प्रकाशन निम्नानुसार हैं:
(घ) अंतर्दृष्टि
अंतर्दृष्टि एक नई श्रृंखला है जो जिला विकास प्रबंधकों के हमारे नेटवर्क के माध्यम से सामयिक मुद्दों पर जमीन से त्वरित
प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए तंत्र के रूप में कार्य करती है. एकत्रित किए गए डाटा से विश्लेषण संक्षिप्त और स्पष्ट
तरीके से प्रस्तुत किया जाएगा.अब तक तीन संस्करण जारी किए गए हैं, जिनमें से दो वित्तीय वर्ष 23 के दौरान जारी किए गए
थे.
(च) इको फोकस
इको फोकस विभाग की एक नई पहल है जिसमें दूध की बढ़ती कीमतों, टमाटर, आलू और प्याज की कीमतों में अस्थिरता जैसे समकालीन
मुद्दों पर विषयगत नोट्स शामिल हैं.
सामयिक मुद्दों पर प्रतिष्ठित जर्नलों में अधिकारियों द्वारा पत्र/ आलेख
नाबार्ड के अधिकारी नाबार्ड के विषय-क्षेत्र से जुड़े सामयिक मुद्दों पर प्रतिष्ठित जर्नलों में अपने आलेख द्वारा योगदान
देते रहे है. कुछ नए प्रकाशनों का विवरण निम्नानुसार है:
Application
Format for Seminar -
Application Format
for Study -
संपर्क विवरण
कुलदीप सिंह
मुख्य महाप्रबंधक
दूसरा माला, ‘बी’ विंग, सी-24, ‘जी’ ब्लॉक
बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स, बांद्रा (पूर्व)
मुंबई - 400051
टेली: 9575
टेली: 9521
ई-मेल पता: dear@nabard.org
आरटीआई के अंतर्गत सूचना – धारा 4(1)(बी)