01 अप्रैल 2019
संदर्भ सं.राबैं.डीओआर (एसटी पॉलिसी)/ 35
परिपत्र सं. 91/डॉर- 31 /2019
प्रबंध निदेशक
सभी राज्य सहकारी बैंक
प्रिय महोदय,
प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित किसानों के लिए राहत उपायों से संबंधित दिशानिर्देश - अल्पावधि (मौसमी कृषि परिचालन) ऋणों का मध्यावधि ऋणों में परिवर्तन -वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए पुनर्वित्त नीति
कृपया दिनांक 11 अप्रैल 2018 के हमारे परिपत्र सं.72/डॉर-18/2018 देखें जिसके माध्यम से वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए पुनर्वित्त नीति की जानकारी दी गई थी और अल्पावधि कृषि ऋणों के मध्यावधि ऋणों में परिवर्तन तथा विद्यमान मध्यावधि (परिवर्तन) के पुन:चरणीकरण/ पुन:अनुसूचीकरण के माध्यम से ऐसे किसानों को राहत देने से संबंधित दिशानिर्देश भी दिए गये थे जिनकी फसल प्राकृतिक आपदाओं के कारण नष्ट हो गई थी. इस नीति की समीक्षा की गई है तथा यह निर्णय लिया गया है कि मोटे तौर पर वही नीति वर्ष 2019-20 के लिए भी जारी रहेगी.
2. सहकारी बैंकों की पात्रता सीआरएआर मानदंडों के अनुपालन से संबद्ध है. अल्पावधि(मौकृप) ऋणों के मध्यावधि ऋणों में परिवर्तन के लिए पुनर्वित्त उन सभी लाइसेंसीकृत राज्य सहकारी बैंक/ मध्यवर्ती सहकारी बैंक को मिलेगा जो निम्नलिखित सीआरएआर शर्तों को पूरा करेंगे.
- क. 9% और उससे अधिक सीआरएआर (31 मार्च 2018 की स्थिति के अनुसार) वाले / जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों की ओर से, केवल ऐसे राज्य सहकारी बैंकों को जिनका सीआरएआर 9% और उससे अधिक हो.
- ख. जिन राज्य सहकारी बैंकों का सीआरएआर 9% से अधिक होगा किंतु किसी जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक विशेष का सीआरएआर 31-03-2018 की स्थिति के अनुसार 9% से कम होगा, उस स्थिति में ऐसे जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों की ओर से उन्हें कोई पुनर्वित्त उपलब्ध नहीं होगा.
3 इसके अलावा, वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए मध्यावधि परिवर्तन/ पुननिर्धारण / पुन:अनुसूचीकरण ऋणों के लिए पुनर्वित्त की ब्याज दरें समय-समय पर नाबार्ड द्वारा संशोधन की शर्त के अधीन होगा. वर्तमान ब्याज दर न्यूनतम 8.10% होगी जो बैंक द्वारा अंतिम उधारकर्ता से प्रभारित की जानेवाली ब्याज वर्तमान दर से 300 बेसिस प्वाइंट से कम होगी और बैंक इस संबंध में, भारतीय रिज़र्व बैंक के निर्धारित मार्गनिर्देशों का पालन कर रहा हो.
4 अन्य निबंधन और शर्तें यथावत हैं.
5 कृपया इस परिपत्र की विषय-वस्तु को आपके कार्य क्षेत्र के अंतर्गत कार्य कर रहे जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों के नियंत्रक कार्यालयों की जानकारी में लाई जाए. कृपया अनुबंध I तथा अनुबंध II के साथ इस परिपत्र की पावती की सूचना हमारे संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को भिजवाएं.
भवदीय
(जी आर चिंताला)
मुख्य महाप्रबंधक
अनुलग्नक : 5 पृष्ठ
अनुबंध I
प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित किसानों के लिए अल्पावधि (मौकृप) ऋणों का मध्यावधि ऋणों में परिवर्तन के लिए राहत उपायों से संबंधित दिशानिर्देश - राज्य सहकारी बैंकों हेतु वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए पुनर्वित्त नीति
1. पात्र जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक के संबंध में राज्य सहकारी बैंक की समेकित ऋण सीमा स्वीकृत की जाएगी.
2. पात्रता मानदंड:
(क) वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए अल्पावधि (मौकृप) सीमाओं की मंजूरी के लिए निर्धारित पात्रता मानदंड मध्यावधि (परिवर्तन) की मंजूरी के लिए भी लागू होंगे.
- 2.1 लेखापरीक्षा
मध्यावधि (परिवर्तन) की लेखा परीक्षा वर्ष 2017-18 के लिए पूरी होनी चाहिए और सापेक्ष वित्तीय विवरणों के साथ सापेक्ष राज्य सहकारी बैंकों की ऑडिट रिपोर्ट नाबार्ड को प्राप्त हो जानी चाहिए. जहां 2018-19 के लिए लेखापरीक्षा पूरी हो गई हो और लेखापरीक्षा रिपोर्ट जारी की गई हो, उसे वित्तीय विवरणों के साथ नाबार्ड को प्रस्तुत की जाए.
3. छोटे किसान/ सीमांत किसान/ अन्य किसानों के लिए केवल वर्तमान अल्पावधि फसल ऋण 5 वर्ष की अवधि हेतु परिवर्तन के लिए पात्र हैं.
4. अनुबंध II में उल्लिखित कुछ निर्धारित शर्तों को पूरा करने और समय-समय पर जारी किए गए अन्य अनुदेशों के अनुपालन के अधीन नाबार्ड से ऋणों के परिवर्तन/ पुननिर्धारण/ पुन: अनुसूचीकरण के संबंध में पुनर्वित्त सहायता उपलब्ध होगी. मध्यावधि परिवर्तन (परिवर्तन) के लिए शेयरिंग पैटर्न निम्नानुसार होगा:
- (क) नाबार्ड पुनर्वित्त - 60%, राज्य सरकार शेयर - 15% और राज्य सहकारी बैंक/ जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक के शेयर - 25%
- (ख) बीमा दावों में नाबार्ड का आनुपातिक हिस्सा, यदि कोई, उसे साधारण बीमा निगम (जीआईसी)/ अन्य बीमा कंपनियों द्वारा निपटाए जाने के पश्चात् तुरंत नाबार्ड को प्रदान कर दिया जाए. इसके अलावा, मध्यावधि (परिवर्तन) सहायता, नाबार्ड अधिनियम, 1981 की धारा 22 में निहित प्रावधानों के अनुसार, 33% से 50% के बीच की फसल हानि के मामले दो वर्ष की अवधि और 50% या उससे अधिक फसल की हानि के मामले में अधिकतम 5 वर्ष की अवधि तक सीमित रहेगी (इस अवधि में एक वर्ष की अधिस्थगन अवधि परिवर्तन/ पुननिर्धारण/ पुन:अनुसूचीकरण में शामिल होगी.
5. मध्यावधि (परिवर्तन/ पुननिर्धारण/ पुन:अनुसूचीकरण) ऋणों के समक्ष बैंकों को पुनर्वित्त प्रदान करने के लिए अन्य निबंधन और शर्तें निम्नानुसार होंगी:
- क. उक्त प्रावधानों के अनुसार मूलधन की चुकौती और ब्याज के भुगतान के संबंध में केवल राज्य सरकार की गारंटी के समक्ष नाबार्ड द्वारा राज्य सहकारी बैंकों को वित्तीय सहायता प्रदान की जा सकती है.
- ख. इसके अलावा, वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए मध्यावधि ऋणों के परिवर्तन/ पुननिर्धारण/ पुन:अनुसूचीकरण के लिए समय-समय पर नाबार्ड द्वारा पुनर्वित्त पर ब्याज की दर तय की जाएगी. ब्याज की वर्तमान दर न्यूनतम 8.10% वार्षिक ब्याज दर की शर्त पर बैंकों द्वारा अंतिम लाभार्थियों से प्रभारित की जाने वाली ब्याज दर से 300 बेसिस प्वाइंट कम है और इस संबंध में बैंकों द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक के निर्धारित दिशानिर्देशों के पालन के अधीन है.
- ग. मूलधन की चुकौती और ब्याज के भुगतान में चूक की स्थिति में, राज्य सहकारी बैंक नाबार्ड को चूक की राशि पर 10.25% प्रति वर्ष की दर से चूक की अवधि के लिए भुगतान करने हेतु उत्तरदायी होगा. दंडात्मक ब्याज दरें समय-समय पर संशोधन के अधीन हैं.
सामान्यत: नाबार्ड द्वारा पुनर्वित्त के आहरण के लिए मंजूरी की तिथि से एक से तीन महीने की अवधि प्रदान की जाती है जिससे बैंक आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा कर सकें और प्रत्येक मामले की मेरिट के आधार पर समय विस्तार प्रदान किया जा सके. रिपोर्ट करने के उद्देश्य से, दिनांक 01.04.2019 से 31.03.2020 तक की अवधि ली गई है.
- घ. राज्य सरकार की गारंटी के समक्ष पुनर्वित्त उपलब्ध होगा. अपनी निर्धारित (15% हिस्सा) हिस्सेदारी प्रदान करने की राज्य सरकार की प्रतिबद्धता भी अपेक्षित होगी.
- ङ. राजस्व प्राधिकारी/ राज्य सरकार द्वारा भू-राजस्व का स्थगन/ माफी.
- च. परिवर्तन की प्रक्रिया पैक्स के स्तर से प्रारंभ होती है और नाबार्ड के स्तर पर समाप्त होती है. फसल ऋण की देय तारीख से पूर्व परिवर्तन प्रभावित होना चाहिए.
अनुबंध II
मध्यावधि (मौकृप) ऋण के परिवर्तन की अनुमति के लिए औपचारिकताएं/ पूर्वापेक्षाएं
परिवर्तन सुविधाएं प्रदान करने के लिए निम्नलिखित औपचारिकताओं/ पूर्वापेक्षाओं को पूरा करने का सुझाव दिया जाता है :
1(क) प्राकृतिक आपदा की स्थिति में, राज्य सरकार
i) सूखा प्रबंधन मैनुअल में उल्लिखित प्रक्रियाओं को अपनाए और उसमें निहित विभिन्न मापदण्डों/ सूचकांकों के आधार पर सूखा की घोषणा का निर्णय लें. इस प्रकार की घोषणाओं में जिन आंकड़ों के आधार पर यह घोषणा की गई, राज्य सरकार द्वारा अपनायी गई प्रक्रियाओं तथा किस सीमा तक फसल की हानि हुई है उसका विस्तार से उल्लेख किया जाए.
अथवा,
ii) राष्ट्रीय कृषि बीमा कार्यक्रम के अनुसार फसल कटाई संबंधी प्रयोग किए जाएं. यह प्रक्रिया बीमे के लिए फसलों को पात्र घोषित करने और परिशिष्ट के अनुसार जारी प्रमाणपत्रों में फसल वार हानि के प्रतिशत को दर्शाते हुए 'अन्नेवारी' (जो भी नाम हो) घोषित करने से पहले की एक शर्त है.
(ख) अन्य आपदाओं की स्थिति में: फसल कटाई के प्रयोगों के माध्यम से हानि का आकलन किया जाए जिसमें स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख किया जाए कि क्षेत्र/ तालुका/ मंडल/ ब्लॉक (जो भी मामला हो) में फसल की हानि 33% या उससे अधिक है ताकि बैंकों से ऋण के पुन:अनुसूचीकरण की मांग की जा सके. अत्यंत खराब परिस्थितियों में जैसे भयंकर बाढ़ आदि की स्थिति में जब यह स्पष्ट दिखाई देता है कि खड़ी फसलों का अधिकांश नुकसान हुआ हो और/ अथवा भूमि और अन्य आस्तियों की बड़े पैमाने पर क्षति हुई हो, राज्य सरकार/ जिला कलेक्टर को इस स्थिति पर राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति/ जिला परामर्श समिति की बैठकों में गहन विचार-विमर्श करना चाहिए और राज्य के संबंधित सरकारी पदाधिकारी/ जिला कलेक्टर को फसल कटाई प्रयोगों के माध्यम से 'अन्नेवारी' (या जिस किसी नाम से फसल नुकसान के प्रतिशत का उल्लेख होता हो) का आकलन न करने के बारे में स्पष्ट करना चाहिए और आंखों देखी/ दृष्टि प्रभावों के आधार पर प्रभावित जनता की जरूरतों के लिए राहत पहुंचाने के निर्णय से समिति के सदस्यों को अवगत करना चाहिए.
दोनों ही मामलों में, इस तरह की घोषणाओं पर कार्य शुरू करने से पहले जिला परामर्श समिति/ राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति को इस बात से आश्वस्त होना चाहिए कि फसल का नुकसान 33% या उससे अधिक हुआ है.
2. सामान्यत: बैंक, किसान- उधारकर्ताओं से प्राकृतिक आपदा के वर्ष में देय फसल ऋणों के मूलधन/ मध्यावधि (परिवर्तन) ऋणों की किस्तों की परिवर्तन/ पुनश्चरणीकरण/ पुन: अनुसूचीकरण करें. तथापि, यदि फसलों के बहुत बड़े नुकसान की घोषणा राज्य सरकार द्वारा की गई है और इसे राज्य स्तरीय बैंकर समिति/ कार्य दल/ इस उद्देश्य के लिए गठित संचालन समिति द्वारा स्वीकार किया गया हो तो, छोटे किसानों/ सीमांत किसानों से देय ब्याज की राशि जो परिवर्तन/ पुनश्चरणीकरण/ पुन: अनुसूचीकरण के लिए पात्र ऋण है, की ब्याज की राशि को एक वर्ष के लिए आस्थगित की जा सकती है. अन्य किसानों के मामले में संबंधित बैंक ब्याज के आस्थगन की आवश्यकता के संबंध में अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करें. इसके अलावा, बैंक ब्याज के आस्थगन का निर्णय, बिना उच्चतर वित्तीय एजेंसियों से वित्त सहायता लिए, स्वयं ले सकते हैं, यदि उनके संसाधन इसके लिए अनुकूल हों.
3. पुनर्निर्धारित ऋणों की चुकौती अवधि अलग हो सकती है. यह अवधि आपदा की तीव्रता और उसकी बारंबारता, आर्थिक सम्पत्तियों के नुकसान और आपदा के दायरे पर निर्भर करेगी. यदि हानि 33% और 50% के बीच हो तो बैंक अधिकतम 2 वर्ष (1 वर्ष की अधिस्थगन अवधि सहित) तक की चुकौती अवधि के लिए अनुमति दे सकते हैं. यदि फसल की 50% या उससे अधिक हानि हुई हो तो चुकौती की पुनर्निर्धारण अवधि को अधिकतम 5 वर्ष (1 वर्ष की अधिस्थगन अवधि सहित) तक बढ़ाया जा सकता है.
4. पुनर्निर्धारण के सभी मामलों में, कम से कम एक वर्ष की अधिस्थगन अवधि पर विचार किया जाए. इसके अलावा, इस प्रकार के पुनर्निर्धारित ऋणों के लिए बैंक अतिरिक्त संपार्श्विक प्रतिभूति पर जोर न दें.
5. बैंकों द्वारा परिवर्तन/ पुनश्चरणीकरण/ पुन: अनुसूचीकरण वाले ऋणों के मामले में, बैंक कोई अतिरिक्त ब्याज की उगाही न करें और यदि पहले ही इस प्रकार का ब्याज लगाया गया है तो उसे माफ करने पर विचार करें.
अनुबंध II का परिशिष्ट
यह प्रमाणित किया जाता है कि वर्ष के दौरान निम्नलिखित गांवों में खरीफ/ रबी* मौसम की खड़ी फसलों को (प्राकृतिक आपदा के प्रकार का उल्लेख करें) के कारण बहुत नुकसान हुआ था और 'अन्नेवारी' के रूप में पैदावार 6 ‘आना’ अर्थात् सामान्य पैदावार से 50% से कम/ 33% से 50% के बीच (अर्थात् _____%) (जो भी लागू हो) रही.
क्रम सं. |
गांव का नाम |
प्रभावित फसल का नाम |
प्रतिशतता अथवा 'आना' के रूप में फसल के नुकसान की मात्रा |
1 |
|
(क)
(ख)
(ग)
|
|
2 |
|
|
|
3 |
|
|
|
4 |
|
|
|
* जो लागू न हो उसे काट दें.
यह भी प्रमाणित किया जाता है कि भारत सरकार, कृषि मंत्रालय द्वारा जनवरी 1980 में ‘प्राकृतिक आपदा की स्थिति में अल्पावधि उत्पादन ऋणों को मध्यावधि और दीर्घावधि ऋणों में परिवर्तित करने के लिए फसल पैदावार निर्धारण की वैज्ञानिक पद्धति' पर नियुक्त कार्य दल की विभिन्न अनुशंसाओं के आधार पर अन्नेवारी निर्धारण की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया गया है और 'अन्नेवारी' की घोषणा करते समय निम्नलिखित संकल्पना/ आधार विशेष का पालन किया गया है.
- (क) क्षेत्र संकल्पना: पैदावार के आकलन हेतु फसलों के निर्धारण के लिए क्षेत्र संकल्पना का पालन किया गया है अर्थात् जिले की सामान्य फ़सली क्षेत्र के 70% क्षेत्र को कवर करने वाली फसलों को ध्यान में रखा गया है.
- (ख) पैदावार की तुलना: प्रभावित वर्ष की पैदावार की तुलना पिछले पांच वर्ष की औसत पैदावार के साथ की गई है.
- (ग) वैज्ञानिक पद्धति: वैज्ञानिक पद्धति अर्थात् फसल कटाई से संबंधित प्रयोगों के माध्यम से औसत फसल पैदावार का अनुमान लगाया जाता है.
- (घ) अन्नेवारी: प्रभावित क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर फसल/ फसलों की पैदावार की तुलना के आधार पर, जिला स्तरीय समिति ने यह प्रमाणित किया है कि प्रभावित क्षेत्रों में असिंचित फसल के मामले में पैदावार 50% या उससे अधिक/ 33% से 50% (जो भी लागू हो) के बीच कम हो गई है और तदनुसार राजस्व विभाग ने इन क्षेत्रों के लिए 'अन्नेवारी' की घोषणा की है.
जिला कलेक्टर/ प्राधिकृत राजस्व अधिकारी के हस्ताक्षर और मुहर
तारीख :