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संस्थागत विकास विभाग

देश की ग्रामीण वित्तीय प्रणाली के लिए एक ऐसी सुदृढ़ और प्रभावी ऋण वितरण प्रणाली आवश्यक है जो कृषि और ग्रामीण विकास के लिए बढ़ती और विविध ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम हो. ग्रामीण ऋण वितरण प्रणाली में शामिल ग्रामीण सहकारी बैंक (आरसीबी) और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) दो महत्वपूर्ण संस्थाएँ हैं.

  • नाबार्ड की स्थापना से ही संस्थागत विकास विभाग (आईडीडी) ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ कर इस दिशा में अग्रणी रहा है. तथापि ऋण जुटाने का कार्य प्रभावशाली रूप से तभी हो सकता है जब इस प्रक्रिया में शामिल संस्थाएँ वित्तीय रूप से सुदृढ़ और स्थिर हों. अतः यह संस्थागत विकास विभाग की परिकल्पना है कि ग्रामीण सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की संस्थागत सुदृढ़ीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाए.
  • यह विभाग संस्थागत सुदृढ़ीकरण एकीकृत और समग्र रूप से करता है. यह भारत सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक, राज्य सरकारों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के प्रायोजक बैंकों के साथ मिल कर ग्रामीण सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की वित्तीय स्थिति में सुधार लाने के लिए पहल करता है.

अ. ग्रामीण सहकारी बैंकों का संस्थागत सुदृढ़ीकरण

अ. ग्रामीण सहकारी बैंकों का संस्थागत सुदृढ़ीकरण

a. विकासात्मक पहलें:

  • ग्रामीण सहकारी संस्थाओं से संबंधित मामलों में भारत सरकार को नीतिगत सहायता.
  • सिस्टमिक डाटा संग्रहण, डाटा विश्लेषण के माध्यम से ग्रामीण सहकारी बैंकों के कामकाज की समीक्षा और अनुप्रवर्तन करना, और उन मुद्दों को रेखांकित करना जिनका निवारण सुधार के माध्यम से किया जा सकता है.
  • पुनर्पूंजीकरण/ पुनर्संरचना और अन्य सुधार जैसे विभिन्न सुधारात्मक उपायों के माध्यम से कमज़ोर बैंकों की वित्तीय हालत में सुधार लाने के लिए भारत सरकार की सहायता करना.
  • भारत सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक, संसदीय समितियों और अन्य विभिन्न संस्थाओं के लिए नीतिगत नोट तैयार करना.
  • अल्पावधि (एसटी) और दीर्घावधि (एलटी) ग्रामीण सहकारी संस्थाओं के परिचालनों की समीक्षा.
  • ग्रामीण सहकारी बैंकों और सहकारी प्रशिक्षण संस्थाओं (सीटीआई) को मानव संसाधनों के क्षमता निर्माण के लिए सहकारिता विकास निधि (सीडीएफ़) के माध्यम से सहायता, पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू और कश्मीर तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्थित ऋण सहकारी संस्थाओं के विकास के लिए विशेष पैकेज; प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) के कंप्यूटरीकरण के लिए प्रोत्साहन अनुदान सहायता प्रदान करने के लिए सहकारिता विकास निधि – योजना
  • ग्रामीण सहकारी बैंकों में व्यापार विविधिकरण और उत्पादन नवप्रवर्तन (बीडीपीआई) के गठन के लिए सीडीएफ़ सहयोग.
  • प्राथमिक कृषि ऋण समितियों का बहु-उद्देशीय सेवा केन्द्रों (एमएससी) में अंतरण के लिए विभिन्न प्रसारात्मक उपायों हेतु सीडीएफ़ अनुदान सहयोग.
  • ग्रामीण सहकारी ऋण संस्थाओं को प्रकाशनों के लिए अनुदान सहायता उपलब्ध कराने की सीडीएफ़-योजना.
  • सहकारिता से संबंधित मामलों पर ग्रामीण सहकारी बैंकों, राज्य सरकारों, भारत सरकार और अन्य हितधारकों के साथ समन्वय.
  • सहकारी समितियों के पंजीयकों (आरसीएस) और राज्य सहकारी बैंकों तथा राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों (एससीएआरडीबी) के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों (सीईओ) की आवधिक बैठकों का आयोजन.
  • ग्रामीण सहकारी बैंकों के कार्यनिष्पादन से संबंधी सांख्यिकीय विवरणियों का प्रकाशन.

ख. मानव संसाधन संबंधी पहलें:

  • प्रक्रियाओं में सुधार, प्रौद्योगिकी उन्नयन और मानव संसाधन विकास के लिए ग्रामीण सहकारी बैंकों की सहायता.
  • वरिष्ठ और मध्यम स्तरीय कार्यपालकों का व्यवसायीकरण
  • सहकारी बैंक कार्मिक प्रशिक्षण वित्तीय सहायता योजना (सॉफ्टकॉब) के अधीन सहकारी बैंकों के प्रशिक्षण संस्थाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना.
  • बैंकर ग्रामीण विकास संस्थान, लखनऊ में स्थापित व्यावसायिक उत्कृष्टता सहकारिता केंद्र (सी-पैक) के माध्यम से सहकारिता प्रशिक्षण संस्थाओं का प्रमाणन
  • ग्रामीण सहकारी बैंकों में अच्छा अभिशासन सुनिश्चित करने के लिए कॉर्पोरेट अभिशासन सूचकांक रिटर्न का विकास और कार्यान्वयन.
  • सहकारी आंदोलन को सुदृढ़ और गहन बनाने के लिए सहकारी इंटर्न्स की नियुक्ति, और तदनुसार एक वस्तुनिष्ठ परिवेश में सहकारी संस्थाओं को समझने के लिए पेशेवर स्नातकों को सक्षम बनाना.
  • प्रतिष्ठित प्रशिक्षण संस्थाओं के माध्यम से संगठन विकास सहयोग (ओडीआई) कार्यक्रमों का संचालन.

आ. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का संस्थागत सुदृढ़ीकरण

क. विकासात्मक पहलें:

  • छमाही आधार पर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कार्यनिष्पादन की समीक्षा.
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण संबंधी मामलों की देखरेख.
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को सांविधिक लेखापरीक्षकों को उपलब्ध करवाना.
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 में संशोधन से संबंधित मामलों पर सरकार को सलाह प्रदान कराना.
  • मानव संसाधन मामलों पर संसदीय समिति और स्थायी सलाहकार समिति विधान से संबंधित विषयों की देखरेख.
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का सांख्यिकीय प्रकाशन करना और अध्ययनों का आयोजन.
  • विभिन्न समितियों को सहायता.

ख. मानव संसाधन संबंधी पहलें:

  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के अध्यक्षों की समिति-आधारित नियुक्तियाँ.
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के निदेशक मंडलों में नाबार्ड के नामिती निदेशकों की नियुक्ति और अनुप्रवर्तन.
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में भर्ती और नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देना.
  • बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान (आईबीपीएस) और सामान्य लिखित परीक्षा (सीडबल्यूई) के माध्यम से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में भर्ती प्रक्रिया से समन्वय.
  • नियुक्तियाँ और पदोन्नति नियमावली (एपीपीआर) और सेवा विनियमनों में संशोधन के मामले में भारत सरकार को सलाह देना.
  • भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में पेंशन योजना के कार्यान्वयन का अनुप्रवर्तन.
  • संयुक्त सलाहकार समिति की बैठकों का आयोजन.
  • दिनांक 01 नवंबर 1993 से कंप्यूटर वृद्धि और पेंशन लागू किया गया है.

I. ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं के लिए विभाग के कार्यक्रम

सहकारी विकास निधि (सीडीएफ़)

दिनांक 02 फरवरी 1993 को सम्पन्न नाबार्ड के निदेशक मंडल की 69वीं बैठक में लिए गए निर्णय के आधार पर राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981 की धारा 45 के प्रावधानों के अधीन ₹10.00 करोड़ की प्रारंभिक निधि से सहकारिता विकास निधि की स्थापना की गई. इसके बाद नाबार्ड के वार्षिक लाभ से इस निधि का संवर्धन किया जाता है.

उद्देश्य:

  • संसाधनों के संग्रहण में चयनित आधार पर आधार स्तरीय सहकारी ऋण संस्थाओं, नामतः प्राथमिक कृषि ऋण समितियों और कमज़ोर ग्रामीण सहकारी बैंकों के प्रयासों के लिए सहायता प्रदान करना.
  • बेहतर कार्य निष्पादन और व्यवहार्यता में सुधार लाने के लिए मानव संसाधन विकास, और साथ ही सहकारी ऋण संस्थाओं में प्रणालियों और प्रक्रियाओं को लागू करना और उनमें सुधार करना.
  • बेहतर प्रबंध सूचना प्रणाली (एमआईएस) का निर्माण करना.
  • कार्य क्षमता में सुधार लाने के लिए विशेष अध्ययनों का आयोजन.

वर्ष 2024-25 के दौरान दोनों अल्पावधि तथा दीर्घावधि सहकारी ऋण संरचना के विभिन्न स्तरों हेतु विभिन्न प्रसारात्मक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए सहकारिता विकास निधि के तहत ₹35.53 करोड़ (दिनांक 31.0.2025 की स्थिति के अनुसार ₹381.48 करोड़) संवितरित किए गए.

क. सहकारिता बैंक कार्मिक प्रशिक्षण वित्तीय सहायता योजना (सॉफ्टकॉब)

सहकारिता विकास निधि का एक बड़ा अंश सहकारिता बैंक कार्मिक प्रशिक्षण वित्तीय सहायता (सॉफ्टकॉब) के माध्यम से प्रशिक्षण संबंधी खर्च के लिए दिए गए. पिछले तीन वर्ष के दौरान सहकारी प्रशिक्षण संस्थाओं (सीटीआई) ने 4000 से अधिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जिसमें सहकारिता क्षेत्र के विभिन्न स्तरों से एक लाख से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया.

  • वर्ष 2020-21 से ऑनलाइन मोड के माध्यम से कार्यक्रमों का संचालन जारी रखा गया है.
  • वर्ष 2024-25 के दौरान देश भर में सीटीआई को ₹16.55 करोड़ की राशि संवितरित की गई.

ख. बहु-उद्देशीय सेवा केन्द्रों (एमएससी) के रूप में प्राथमिक कृषि ऋण समितियां (पैक्स)

  • नाबार्ड के पुनर्वित्त विभाग ने वर्ष 2020-21 से तीन वर्षों की अवधि में सभी संभाव्यतायुक्त प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) को बहु सेवा केन्द्रों (एमएससी) में बदलने के लिए विशेष पुनर्वित्त सुविधा आरंभ की है जिसमें प्राथमिक कृषि ऋण समितियों द्वारा गुणवत्ता वाली आधारभूत संरचना (पूंजीगत आस्तियां) के निर्माण और सदस्यों की उभरती आवश्यकताओं के अनुरूप व्यापार पोर्टफोलियो बढ़ाने के लिए राज्य सहकारी बैंकों को 3% की रियायती पुनर्वित्त सहायता दी जाती है.
  • एसआरएफ़-एमएससी के रूप में पैक्स से संबंधित डीपीआर तैयार करने, दस्तावेजीकरण, सर्वेक्षण आदि जैसे संबद्ध उपायों हेतु सीडीएफ़ से ऋण राशि के 10% की अनुदान सहायता उपलब्ध कराई जाती है. अनुदान राशि अधिकतम ₹2.00 लाख प्रति प्राथमिक कृषि ऋण समिति तक होगी.

ग. ग्रामीण सहकारी बैंकों में व्यापार विविधिकरण और उत्पाद नवोन्मेष कक्ष (बीडीपीआईसी)

  • नाबार्ड ने वर्ष 2020 में उत्पाद नवप्रवर्तन और व्यापार विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए राज्य सहकारी बैंकों में व्यापार विविधता और उत्पाद नवप्रवर्तन कक्षों (बीडीपीआईसी) की स्थापना के लिए ग्रामीण सहकारी बैंकों के प्रयासों को सहयोग प्रदान करने और प्रोत्साहित करने की योजना प्रारंभ की.
  • दिनांक 31.03.2025 की स्थिति के अनुसार बीडीपीआईसी के तहत मंजूर की गई संचयी सहायता ₹1386.00 लाख थी.
  • वर्ष 2024-25 के दौरान संवितरण और दिनांक 31.03.2025 की स्थिति के अनुसार संचयी संवितरण क्रमशः ₹161.50 लाख और ₹489.85 लाख थे.

घ. ग्रामीण सहकारी बैंकों में शिकायत निवारण तंत्र का सुदृढ़ीकरण

  • शिकायतों के समयबद्ध और तत्काल निवारण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए नाबार्ड द्वारा शिकायतों के निवारण के मौजूदा तंत्र को और अधिक सुदृढ़ किया गया है. इस संबंध में सभी ग्रामीण सहकारी बैंकों को दिनांक 06 अगस्त 2024 को एक परिपत्र जारी किया गया है.
  • सीपीग्राम्स और रिजर्व बैंक एकीकृत ऑम्ब्ड्स्मैन योजना 2021 (आरबी-आईओएस 2021) के तहत निर्धारित मौजूदा टीएटी के अनुरूप शिकायतों के निवारण हेतु टर्नअराउंड टाइम (टीएटी) को कम किया गया है. तदनुसार शिकायतों को संबोधित करने/ का निवारण करने हेतु दिनों की संख्या अब 30 दिन है.
  • ग्रामीण सहकारी बैंकों द्वारा शिकायतों को अपलोड करने हेतु नाबार्ड में स्थित सॉफ्टवेयर फ़ैक्टरी द्वारा आंतरिक रूप से एक पोर्टल विकसित किया जा रहा है.

ङ. व्यावसायिक उत्कृष्टता सहकारिता केंद्र (सी-पैक)

  • अल्पावधि सहकारी ऋण संरचना (एसटीसीसीएस) में सहकारी प्रशिक्षण संस्थाओं (सीटीआई) को बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं के उत्कृष्ट प्रशिक्षण देने में सहयोग प्रदान करने के लिए नाबार्ड ने वर्ष 2009 में जीआईज़ेड के सहयोग से बैंकर ग्रामीण विकास संस्थान (बर्ड), लखनऊ में ‘सहकारिता व्यावसायिक उत्कृष्टता केंद्र (सी-पैक)’ की स्थापना की.

च. प्रगति और प्रबंध सूचना प्रणाली का अनुप्रवर्तन

यह विभाग ग्रामीण सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा डाटा की प्रस्तुति के प्लैटफ़ॉर्म – एन्श्योर के माध्यम से ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं की वित्तीय स्थिति का नियमित अनुप्रवर्तन करता है.

II. भारत सरकार के सहयोग के साथ विभाग की प्रमुख पहलें

क. आम सेवा केंद्र (सीएससी) के रूप में प्राथमिक कृषि ऋण समितियां

  • सहकारिता मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, नाबार्ड और सीएससी ई-गवर्नन्स सर्विसेस इंडिया लिमिटेड के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए जिससे पैक्स के माध्यम से बैंकिंग, बीमा, आधार नामांकन/ अप्डेशन, स्वास्थ्य सेवाएँ, पैन कार्ड और आईआरसीटीसी/ बस/ हवाई टिकट, आदि जैसे 300 से अधिक ई-सेवाएँ प्रदान की जा सके.

अभी तक 35,000 से अधिक पैक्स ने ग्रामीण नागरिकों को सीएससी सेवाएँ प्रदान करना प्रारंभ कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप इन पैक्स की आय में भी वृद्धि होगी.

क. सहकारी संस्थाओं के सुदृढ़ीकरण हेतु सहकारी इंटर्न्स की नियुक्ति

सहकारिता मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रारंभित पहलों के लाभों को आधार स्तर तक पहुंचाना सुनिश्चित करने, सहकारी आधारित आर्थिक मॉडल को सुदृढ़ करने और सहकारी संस्थाओं हेतु आवश्यक क्षमता निर्माण सुनिश्चित करने के लिए नाबार्ड एक योजना का कार्यान्वयन कर रहा है. अतः यह निर्णय लिया गया है कि सभी राज्य सहकारी बैंक और जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक युवा पेशेवर, नामतः ‘सहकारी इंटर्न’ को प्रारंभिक रूप से तीन वर्ष के लिए नियुक्त करेंगे, जिसमें प्रत्येक इंटर्न एक वर्ष के लिए नियुक्त किया जाएगा.

उद्देश्य:

  • i. आधार स्तर तक सहकारी आंदोलन की पहुँच बढ़ाना.
  • ii. पेशेवर स्नातकों को सहकारी संस्थाओं के संदर्भ और व्यावहारिक कार्यप्रणाली को सीखने में सक्षम बनाना.
  • iii. अनुभवी सहकारी पेशेवरों के पूल का विस्तार करना. इंटर्न्स पैक्स के समक्ष कंप्यूटरीकरण, व्यावसायिक योजनाओं, परियोजनाओं की तैयारी, वित्तीय मुद्दों, विभिन्न अनुमोदनों, आदि जैसी दैनिक चुनौतियों का समाधान करने हेतु जिम्मेदार होंगे.

क. प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के कंप्यूटरीकरण के लिए केंद्रीय क्षेत्र योजना

  • देश में 63,000 क्रियाशील प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) के कंप्यूटरीकरण के लिए नाबार्ड, भारत सरकार के सहकारिता मंत्रालय की केंद्रीय प्रायोजित परियोजना की कार्यान्वयक संस्था है.
  • यह ₹2516 करोड़ की परियोजना 5 वर्षों में लागू की जाएगी. इसका उद्देश्य प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) के लिए एक राष्ट्र स्तरीय एकसमान सॉफ्टवेयर - उद्यम संसाधन आयोजना (ईआरपी) - तैयार करना है जो इन प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) के लिए राष्ट्र स्तरीय डाटा प्रस्तुत कर सके, प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) के बहु-आयामी गतिविधियों, चाहे ऋण या ग़ैर-ऋण हो, को शामिल करके और उन्हें व्यावसायिक बहु-उद्देशीय सेवा केन्द्रों (एमएससी) में परिवर्तित करें.

ख. ‘सहकारी समितियों के बीच सहयोग’ पर परियोजना

  • ‘सहकारी समितियों के बीच सहयोग’ सहकारिताओं के सात सिद्धांतों में से एक है. इसे सुदृढ़ करने के लिए दिनांक 12 जुलाई 2023 को आयोजित नाबार्ड स्थापना दिवस पर माननीय केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री द्वारा एक प्रायोगिक परियोजना प्रारंभ की गई.
  • प्रारंभिक रूप से गुजरात के पाँच जिलों में कार्यान्वित इस परियोजना को वित्तीय समावेशन निधि (एफ़आईएफ़) से ₹367 लाख के अनुदान सहयोग के साथ बनासकांठा और पंचमहाल जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों में निष्पादित किया गया. इस पहल के भाग के रूप में दुग्ध सहकारी समितियों में 1,271 माइक्रो-एटीएम नियोजित किए गए, जिनमें से 1,191 को नाबार्ड का समर्थन प्राप्त है.
  • इस परियोजना को दिनांक 15 जनवरी 2024 को संपूर्ण गुजरात राज्य में विस्तारित किया गया और बाद में इसे दिनांक 19 सितंबर 2024 को लॉन्च किए गए मानक परिचालन प्रक्रिया (एसओपी) के माध्यम से देश भर में प्रारंभित किया गया.
  • इस प्रायोगिक परियोजना का महत्त्वपूर्ण प्रभाव रहा, और इसके परिणामस्वरूप 3.9 लाख नए खाते खुले और जमाराशियों में ₹772 करोड़ की वृद्धि हुई. इसके अलावा 77,995 नए रुपे किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए गए, जिससे डेयरी किसानों हेतु सामयिक और किफ़ायती ऋण की पहुँच सुनिश्चित की गई. डिजिटल लेनदेनों में 50 गुना की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय पहुँच में सुधार आया.
  • इसी सफलता को ध्यान में रखते हुए इसके और अधिक विस्तार की योजना बनाई गई. 18 जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों में 6,930 माइक्रो-एटीएम नियोजित करने हेतु ₹15.57 करोड़ का बजट मंजूर किया गया. बैंक मित्र मॉडल प्रारंभित किया गया, जिससे दुग्ध समितियों को घर पर डिजिटल बैंकिंग हेतु व्यवसाय प्रतिनिधि (बीसी) के रूप में कार्य करने के लिए सक्षम बनाया जा सके.

क. वंचित जिलों में जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों का निर्माण

  • सहकारिता मंत्रालय ने देश में प्रत्येक जिले को एक व्यवहार्य जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक और एक व्यवहार्य जिला दुग्ध उत्पादक संघ के साथ कवर करने के लिए एक पहल शुरू की है.
  • तदनुसार नाबार्ड ने कानूनी/ विनियामक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए वंचित जिलों में नए जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक खोलने के लिए एक योजना/ कार्य योजना तैयार की है, जिससे सहकारी बैंकों द्वारा संपूर्ण कवरेज प्रदान किया जा सके.

ख. देश में सहकारिता आंदोलन सुदृढ़ बनाने की केंद्रीय योजना – सभी वंचित जिलों/ गाँवों में 2.0 लाख नए बहु-उद्देशीय प्राथमिक कृषि ऋण समितियों/ डेयरी/ मत्स्यपालन सहकारी समितियों का निर्माण

  • देश में सहकारी आंदोलन को सुदृढ़ बनाने और इसे आधार स्तर तक ले जाने के लिए दिनांक 15 फरवरी 2023 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक केंद्रीय योजना को अनुमोदित किया है.
  • इस योजना के तहत वंचित और अल्प-सेवित पंचायतों/ गाँवों में पाँच वर्ष में 2.0 लाख नए बहु-उद्देशीय प्राथमिक कृषि ऋण समितियों/ डेयरी/ मत्स्यपालन सहकारी समितियों की स्थापना की परिकल्पना की गई है, जिससे देश में सहकारी आंदोलन को सुदृढ़ बनाया जा सके और इसे आधार स्तर तक ले जाया जा सके.
  • एम-पैक्स, डेयरी और मत्स्यपालन समितियों के निर्माण के कार्य का कार्यान्वयन क्रमशः नाबार्ड, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) और राष्ट्रीय मत्स्यव्यवसाय विकास मंडल (एनएफ़डीबी) के द्वारा किया जा रहा है. इस कार्य में उन्हें राज्य सहकारी विभाग, राज्य सहकारी बैंकों, जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों, पैक्स, राज्य संस्थाओं, संघों आदि से सहयोग मिल रहा है. समग्र निर्देश और मार्गदर्शन सहकारिता मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रदान किया जा रहा है.
  • नाबार्ड ने मार्गदर्शिका की तैयारी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और सभी प्रमुख लॉन्च कार्यक्रमों को सक्रिय रूप से सुगम बनाया है.
  • नाबार्ड ने लगभग 70,000 नए एम-पैक्स की स्थापना हेतु एक व्यापक कार्य योजना विकसित की है, जिसके तहत वंचित ग्राम पंचायत को लक्ष्यित करना, और निष्क्रिय पैक्स का स्थान लेना शामिल है. इस योजना का कार्यान्वयन दो चरणों में संरचित है: चरण I का लक्ष्य वित्तीय वर्ष 2024 और वित्तीय वर्ष 2025 के दौरान 23,400 एम-पैक्स की स्थापना करना है, जबकि चरण II अनुवर्ती तीन वर्ष में 47,000 एम-पैक्स के निर्माण को कवर करेगा.
  • नाबार्ड ने मार्च 2025 तक 5,000 से अधिक नए एम-पैक्स का गठन सफलतापूर्वक किया है.

ग. पैक्स त्वरक प्रायोगिक परियोजना

  • उन्नति चरण II पहल के तहत बीसीजी के सहयोग के साथ नाबार्ड ‘पैक्स त्वरक कार्यक्रम’ कार्यान्वित कर रहा है, जिससे पैक्स को गैर-ऋण व्यावसायिक गतिविधियों में विविधता लाने में सहायता दी जा सके. प्रायोगिक चरण के भाग के रूप में इस कार्यक्रम का कार्यान्वयन राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तेलंगाणा राज्यों में 30 पैक्स में किया जा रहा है. इन 30 पैक्स का चयन राज्य सहकारी बैंकों और जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों के परामर्श के साथ किया गया था.

घ. ‘कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों में सुधार, पुनर्संरचना और नवोन्मेष’ पर अध्ययन

  • सहकारिता मंत्रालय, भारत सरकार ने नाबार्ड से “कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों में सुधार, पुनरसंरचना और नवप्रवर्तन” पर नाबार्ड से अध्ययन करने का आग्रह किया है.
  • नाबार्ड ने नैबकॉन्स को अध्ययन का दायित्व सौंपा है और सहकारिता मंत्रालय में इससे संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है.

ङ. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का पुनर्पूंजीकरण

  • लाभ/ हानि के माध्यम से पूंजी में अपेक्षित आंतरिक उपचय को ध्यान में रखते हुए नाबार्ड हर वर्ष 9% सीआरएआर की अनिवार्यता का पालन न करने वाले क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण का आकलन करता है.
  • नाबार्ड के आकलन के आधार पर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित 9% के सीआरएआर के स्तर की प्राप्ति के लिए भारत सरकार, राज्य सरकार और प्रायोजक बैंक पुनर्पूंजीकरण सहायता प्रदान करते हैं. वित्तीय वर्ष 2021-22 और वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान दो वर्षों में इस प्रयोजन के लिए 22 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को ₹10,890 करोड़ की सहायता दी गई. यह राशि केंद्र सरकार, राज्य सरकार और प्रयोजक बैंक क्रमश: 50%, 15% और 35% की दर से वहन करेंगे.
  • वित्तीय वर्ष 20021-22 के दौरान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में पूँजी लगाने के पहले चरण का अनुमोदन करते हुए भारत सरकार ने बताया कि व्यवहार्यता योजना के अनुसार परिचालनात्मक और अभिशासन सुधारों में अच्छी प्रगति दर्शाने के बाद क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अगली 25% पुनर्पूंजीकरण सहायता दिनांक 31 मार्च 2023 तक दी जाएगी.
  • व्यवहार्यता योजना का उद्देश्य क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की व्यापार विविधता, अनर्जक आस्ति प्रबंधन, युक्ति-संगत लागत बनाने, प्रौद्योगिकी अपनाने, कॉर्पोरेट अभिशासन प्रणाली, मानव संसाधन विकास आदि में व्यापक सुधारों को लागू करना है. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा प्रौद्योगिकी के अपनाने में, क्षमता विकास, उत्पाद नवप्रवर्तन आदि के क्षेत्र में केंद्रीय सेवाओं को उपलब्ध कराने में नाबार्ड एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी.
  • पुनर्पूंजीकृत सहित सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक प्रौद्योगिकी अपनाने सहित अपनी वित्तीय शक्ति और परिचालनात्मक दक्षता में सुधार लाने के लिए अपनी व्यवहार्यता योजनाएँ लागू कर रहे हैं.
  • नाबार्ड ने वित्तीय सेवाएँ विभाग, भारत सरकार के साथ मिल एक बाह्य संस्था के माध्यम से ‘व्यवहार्यता योजना’ के अधीन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के वित्तीय कार्यनिष्पादन का ऑनलाइन अनुप्रवर्तन के लिए संयुक्त रूप से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के लिए एक ‘डैश बोर्ड’ विकसित किया है.
  • पुनर्पूंजीकरण का प्रभाव बैंकों के वित्तीय परिणामों से स्पष्ट होता है.
    • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान ₹7,571 करोड़ के रूप में अब तक का सर्वाधिक समेकित शुद्ध लाभ दर्ज किया है, और
    • दिनांक 31 मार्च 2024 की स्थिति के अनुसार उनका समेकित सीआरएआर 14.2% के सर्वकालिक उच्च स्तर पर था.
    • जीएनपीए (सकल अनर्जक आस्तियां) द्वारा मापी गई आस्ति गुणवत्ता 6.1% पिछले 10 वर्षों में सबसे कम थी.
    • ऋण विस्तार के कारण समेकित सीडी अनुपात 71.4% तक बढ़ गया, जो 33 वर्षों में सबसे अधिक था.
  • अधिक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा अपने ग्राहकों को डिजिटल सेवाएँ प्रदान करने के साथ प्रौद्योगिकी अपनाने की गति में वृद्धि हुई है. इसके अलावा वर्ष के दौरान प्रमुख योजनाओं के कार्यान्वयन में उनकी हिस्सेदारी में वृद्धि के साथ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने वित्तीय समावेशन गतिविधियों में नई रुचि दिखाई है.
  • नाबार्ड द्वारा वित्तीय सेवाएँ विभाग के साथ संयुक्त रूप में एक बाह्य संस्था के माध्यम से एक डैशबोर्ड ‘RRBदर्पण’ विकसित किया गया है, जिससे ‘व्यवहार्यता योजना’ के तहत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के वित्तीय कार्यनिष्पादन का निरंतर ऑनलाइन अनुप्रवर्तन किया जा सके और विभिन्न मापदंडों के अंतर्गत उनके समग्र वित्तीय कार्यनिष्पादन का व्यापक अनुप्रवर्तन किया जा सके.

च. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के समामेलन का चरण IV

  • भारत सरकार ने “एक राज्य एक आरआरबी” की नीति के आधार पर दिनांक 07 अप्रैल 2025 की अपनी अधिसूचना के माध्यम से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के समामेलन की अधिसूचना दी.
  • दिनांक 01 मई 2025 से 11 राज्यों/ संघ राज्य क्षेत्र में 26 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का समामेलन कर 11 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का निर्माण किया गया, जिसके परिणामस्वरूप देश भर में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की कुल संख्या 43 से घटकर 28 हो गई. इसके अलावा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के प्रायोजक व्यावसायिक बैंकों की संख्या 12 से घटकर 10 हो गई.
  • नाबार्ड ने “राष्ट्रीय स्तरीय मानक परिचालन प्रक्रिया” और अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफ़एक्यू) तैयार कर सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को विनियामक दिशानिर्देश प्रदान किए, जिससे समामेलन प्रक्रिया का सुगम कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके.
  • नियमित अनुप्रवर्तन और मार्गदर्शन हेतु “राष्ट्रीय स्तरीय परियोजना अनुप्रवर्तन इकाई” और राज्य वार “राज्य स्तरीय अनुप्रवर्तन समिति (एसएलएमसी)” तैयार की गई.
  • नाबार्ड क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को आईटी एकीकरण हेतु मार्गदर्शन और हैंड-होल्डिंग सहयोग प्रदान कर रहा है.

छ. आंध्र प्रदेश ग्रामीण विकास बैंक (एपीजीवीबी) की आस्तियों और देयताओं का विभाजन:

  •  नाबार्ड को भारत सरकार द्वारा एपीजीवीबी की आस्तियों और देयताओं के विभाजन पर कार्य दल (डब्ल्यूजी) की अनुशंसाओं के अनुसार आंध्र प्रदेश और तेलंगाणा राज्यों के बीच एपीजीवीबी की आस्तियों और देयताओं के विभाजन हेतु आवश्यक कार्रवाई करने के लिए सूचित किया गया है.
  • दिसंबर 2024 में एक विभाजन प्रबंधन कार्यालय (बीएमओ) स्थापित किया गया और पहले तैयार किया गया एसओपी दस्तावेज़ को दोनों बैंकों के कई विभागों के साथ मिलकर विस्तारित किया गया और एक विस्तृत परियोजना योजना को अंतिम रूप दिया गया.
  • इसके अलावा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 (1976 का 21) की धारा 23क की उप-धारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार ने दिनांक 03 फरवरी 2025 की अपनी अधिसूचना एस. ओ. 600(ई) के माध्यम से दिनांक 20 अक्तूबर, 2014 की अधिसूचना सं. 2718(ई) के अनुसरण में तेलंगाणा राज्य में कार्यशील तेलंगाणा ग्रामीण बैंक और आंध्र प्रदेश ग्रामीण विकास बैंक के दिनांक 01 जनवरी 2025 से प्रभावी समामेलन की अधिसूचना दी.

संपर्क सूचना

श्री एस के नन्दा

प्रभारी अधिकारी
संस्था विकास विभाग,
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक
प्लॉट नं. सी-24, ‘जी’ ब्लॉक, बांद्रा-कुर्ला संकुल, पोस्ट बॉक्स 8121
बांद्रा (पूर्व), मुंबई -400 051
दूरभाष : 022-68120044

ई-मेल : idd@nabard.org

 

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नाबार्ड प्रधान कार्यालय