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उद्भव और विज़न

आयोजना प्रक्रिया के आरंभ से ही भारत सरकार के सामने यह बात स्पष्ट थी कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने में संस्थागत ऋण अत्यंत महत्वपूर्ण है. अत: भारत सरकार के कहने पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस महत्वपूर्ण पहलू की गहन पड़ताल के लिए कृषि और ग्रामीण विकास के लिए संस्थागत ऋण की व्यवस्थाओं की समीक्षा हेतु एक समिति (क्रैफीकार्ड) का गठन किया. योजना आयोग, भारत सरकार के पूर्व सदस्य श्री बी शिवरामन की अध्यक्षता में यह समिति 30 मार्च 1979 को गठित की गई. 
28 नवंबर 1979 को प्रस्तुत अन्तरिम रिपोर्ट में समिति ने यह रेखांकित किया कि ग्रामीण विकास से जुड़े ऋण संबंधी मुद्दों पर अखंडित रूप से ध्यान देने, उनको बलपूर्वक वांछित दिशा में ले जाने और उन पर सम्पूर्ण बल देने के लिए एक नई संस्थागत संरचना की आवश्यकता है. समिति की अनुशंसा थी कि अपनी तरह की एक विकास वित्तीय संस्था गठित की जाए जो इन आकांक्षाओं की पूर्ति कर सके और संसद ने 1981 के अधिनियम 61 के माध्यम से राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के गठन का अनुमोदन किया. 
 
भारतीय रिज़र्व बैंक के कृषि ऋण कार्यों और तत्कालीन कृषि पुनर्वित्त और विकास निगम (एआरडीसी) के पुनर्वित्त कार्यों को अंतरित कर नाबार्ड 12 जुलाई 1982 को अस्तित्व में आया. यह संस्था स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा 05 नवंबर 1982 को राष्ट्र की सेवा में समर्पित की गई. रु.100 करोड़ की आरंभिक पूँजी से स्थापित इस बैंक की चुकता पूँजी 31 मार्च 2021 को रु.15,080 करोड़ हो गई. भारत सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक के बीच शेयर पूँजी की हिस्सेदारी में संशोधन के बाद आज नाबार्ड भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्व में है. 
 
विज़न 
 
ग्रामीण समृद्धि के लिए राष्ट्रीय विकास बैंक.
 
मिशन 
 
सहभागिता, संधारणीयता और समानता पर आधारित वित्तीय और गैर-वित्तीय सहयोगों, नवोन्मेषों, प्रौद्योगिकी और संस्थागत विकास के माध्यम से समृद्धि लाने के लिए कृषि और ग्रामीण विकास का संवर्धन.