कृषि क्षेत्र विकास विभाग

नाबार्ड के तत्कालीन विकास नीति विभाग – कृषि क्षेत्र से कृषि क्षेत्र विकास विभाग(एफ़एसडीडी) की स्थापना की गई.

इस विभाग की स्थापना का उद्देश्य निम्नलिखित विभिन्न कार्यक्रमों के अधीन नीतियों को तैयार करना और विविध प्रकार के पहलों का कार्यान्वयन करना है:

  • प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन
  • ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं के आधारस्तरीय ऋण को गति प्रदान करना
  • कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि का प्रसार करना
  • ग्रामीण रोज़गार के अवसर पैदा करना
  • ऋण और अनुदान के माध्यम से ग्रामीण ग़रीबों के जीवन में सुधार लाना
  • भारत सरकार के समग्र नीति के अंतर्गत कृषि और कृषि अनुषंगी क्षेत्रों से संबंधित उपयुक्त नीतियों को तैयार करना, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन का अनुकूलन और इसके प्रभावों को कम करना
  • जलवायु परिवर्तन का अनुकूलन और इसके प्रभावों को कम करना

कृषि क्षेत्र विकास विभाग निम्नलिखित निधियों का प्रबंधन करता है

  • वाटरशेड विकास विभाग (डबल्यूडीएफ़)
  • जनजाति विकास निधि (टीडीएफ़)
  • उत्पादक संगठन विकास निधि (पीओडीएफ़)
  • उत्पादन संगठन विकास और उन्नयन निधि (पीआरओडीयूसीई)
  • केंद्रीय कृषक उत्पादक संगठन (एफ़पीओ) प्रवर्तन और संवर्धन योजना
  • कृषि क्षेत्र प्रवर्तन निधि (एफ़एसपीएफ़)

विभाग के प्रमुख कार्य

i. वाटरशेड विकास निधि (डबल्यूडीएफ़)

खाद्यान्न उत्पादन में वर्षा सिंचित क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका है. कुल बुवाई क्षेत्र में इसकी 51% भागीदारी है और कुल खाद्यान्न उत्पादन में इसकी भागीदारी 40-45% है. वर्षा सिंचित कृषि की समस्याओं को दूर करने के लिए नाबार्ड ने केएफ़डबल्यू सहायता प्राप्त महाराष्ट्र में इंडो-जर्मन वाटरशेड विकास कार्यक्रम (आईजीडबल्यूडीपी) वर्ष 1992 में वाटरशेड विकास के क्षेत्र में प्रवेश किया. इसमें पहली बार बड़े पैमाने पर वाटरशेड विकास के सहभागी दृष्टिकोण को अपनाया गया.

इंडो-जर्मन वाटरशेड विकास कार्यक्रम (आईजीडबल्यूडीपी) के अंतर्गत सहभागी वाटरशेड विकास के सफल कार्यान्वयन के आधार पर वर्ष 1999-2000 में नाबार्ड में रु.200 करोड़ की आरंभिक निधि से वाटरशेड विकास निधि (डबल्यूडीएफ़) का गठन किया गया. इस राशि में भारत सरकार और नाबार्ड की बराबर हिस्सेदारी है. ग्रामीण आधारभूत विकास निधि (आरआईडीएफ़) के अधीन वर्षों के दौरान अर्जित विभेदक ब्याज की राशि से इस निधि का संवर्धन किया जाता है.

ii. जनजाति विकास निधि (टीडीएफ़)

आदिवासी विकास कार्यक्रमों के सफल अनुभव के आधार पर नाबार्ड ने देश भर में एक या दो एकड़ के बगीचों के प्रसार के लिए वर्ष 2003-04 के लाभ में से रु.50 करोड़ की आरंभिक निधि से आदिवासी विकास निधि (टीडीएफ़) का गठन किया. कालांतर में यह निधि बढ़ कर 30 अप्रैल 2024 को रु.1137 करोड़ हो गई जिसमें रु.785.64 करोड़ की स्वीकृत स्वीकृति शामिल है. जनजाति विकास निधि के अंतर्गत राज्य सरकारों, कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके), ग़ैर सरकारी संगठनों और कारपोरेट्स के साथ मिल कर परियोजनाओं का कार्यान्वयन किया जाता है. जनजाति वर्ग की आजीविका में सुधार लाने के लिए एक संपुष्ट बगीचे का विकास इस जनजाति विकास कार्यक्रम का केंद्र होता है. इन वर्षों में भूमिहीन जनजाति वर्ग के परिवारों के लिए पशुपालन, रेशम उत्पादन, लाख, एनटीएफ़पी आदि को भी आजीविका हस्तक्षेपों में शामिल किया गया है.

iii. कृषक उत्पादक संगठनों का संवर्धन

कृषक उत्पादक संगठन कानूनी संस्थान होते हैं जिनका गठन कृषक, दूध उत्पादक, मत्स्यपालक, बुनकर, ग्रामीण कारीगर, शिल्पकार आदि करते हैं. उत्पादकों की शुद्ध आय को बढ़ाने के उद्देश्य से छोटे उत्पादकों को कृषि मूल्य शृंखला से जोड़ने में कृषक उत्पादक प्रभावशाली बन गए हैं. नाबार्ड निम्नलिखित कार्यक्रमों के माध्यम से कृषक उत्पादक संगठनों को वित्तीय और विकासात्मक सहायता प्रदान करता है.

i. उत्पादक संगठन विकास निधि (पीओडीएफ़)

उत्पादक संगठनों की शक्ति को पहचानते हुए नाबार्ड ने वर्ष 2011 में ऋण सुविधा, क्षमता विकास और बाज़ार से जोड़ने जैसे तीनों स्तरों पर इन संगठनों की सहायता करने के लिए नाबार्ड ने अलग से एक “उत्पादक, संगठन विकास निधि (पीओडीएफ़) निधि का गठन किया. इसके साथ-साथ व्यापार उद्भवन सेवाएँ – बिज़नेस इंक्यूबेशन सर्विसेस, कौशल विकास, सफल मॉडेलों का प्रलेखन, व्यापार प्रबंधन आदि में आईसीटी अप्लीकेशन भी उपलब्ध कराया जाता है. नाबार्ड ने 3000 कृषक उत्पादक संगठनों के प्रवर्तन और पोषण के लिए कृषक संगठन विकास निधि – विभेदक ब्याज (पीओडीएफ़-आईडी) नमक नई योजना भी शुरू की है. आधारभूत ग्रामीण विकास निधि के विभेदक ब्याज की राशि से विनयोजित किए जाने के कारण इसे ऐसा नाम दिया गया.

ii. कृषक संगठन विकास और उन्नयन निधि (पीआरओडीयूसीई)

भारत सरकार ने वर्ष 2014-15 में देश में 2,000 कृषक उत्पादक संगठनों के संवर्धन के लिए रु.200 करोड़ की निधि से नाबार्ड में कृषक संगठन विकास और उन्नयन निधि (पीआरओडीयूसीई) का गठन किया. इस निधि का उद्देश्य नए कृषक उत्पादक संगठनों का प्रवर्तन और उनकी आरंभिक वित्तीय आवश्यकताओं के लिए सहायता दी जाती है ताकि वे ऋण योग्य बनाया जा सके और वाणिज्यिक रूप से जीवंत और किसानों के संधारणीय व्यापार उद्यम बन सके.

iii. केंद्रीय कृषक उत्पादक संगठन (एफ़पीओ) प्रवर्तन और संवर्धन योजना

भारत सरकार ने देश में 10,000 कृषक उत्पादक सगठनों के गठन और संवर्धन हेतु केंद्रीय कृषक उत्पादक संगठन (एफ़पीओ) प्रवर्तन और संवर्धन योजना की घोषणा की है और कार्यान्वयक संस्थाओं में नाबार्ड एक है. योजना का लक्ष्य नए कृषक उत्पादकों का गठन करना और इनकी आरंभिक वित्तीय आवश्यकताओं के लिए सहायता प्रदान करना है ताकि वे ऋण योग्य, वाणिज्यिक रूप से जीवंत बना सके और किसानों के लिए एक संधारणीय व्यापार उद्यम के रूप में उन्हें तैयार किया जा सके. केंद्रीय कृषक उत्पादक संगठन (एफ़पीओ) प्रवर्तन और संवर्धन योजना के लिए बैंकर ग्रामीण विकास संस्थान (बर्ड), लखनऊ को नोडल प्रशिक्षण संस्थान के रूप में पहचान की गई है. नाबार्ड की सहायक कंपनी नैबसंरक्षण के अधीन रु.1,000 की राशि से ऋण गारंटी निधि का गठन किया गया है जिसमें भारत सरकार और नाबार्ड की समान भागीदारी है.

Iv. कृषि क्षेत्र प्रवर्तन निधि – फ़ार्म सेक्टर प्रमोशन फ़ंड (एफ़एसपीएफ़)

नाबार्ड में कृषि क्षेत्र प्रवर्तन निधि फ़ार्म सेक्टर प्रमोशन फ़ंड (एफ़एसपीएफ़) की स्थापना 26 जुलाई 2014 को तत्कालीन दो निधियों – कृषि नवप्रवर्तन प्रसार निधि – फ़ार्म इन्नोवेशन एंड प्रमोशन फ़ंड (एफ़आईपीएफ़) और कृषक प्रौद्योगिकी अंतरण निधि – फ़ार्मर्स टेक्नोलोजी ट्रांस्फर फ़ंड (एफ़टीटीएफ़) का विलय कर के की गई थी. यह निधि कृषि और अनुषंगी क्षेत्रों में उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए नवप्रवर्तनशील और व्यवहार्य संकल्पनाओं / परियोजनाओं के प्रसार और प्रौद्योगिकी अंतरण पर अधिक बल देती है.

विभाग की व्यापक उपलब्धियां (30 जून , 2024 तक)

क. वाटरशेड विकास निधि

कुल मिलाकर 27.09 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हुए स्वीकृत 3747 पनधारा विकास और संबंधित परियोजनाओं की तुलना में 2942 परियोजनाएं सफलतापूर्वक पूरी/बंद कर दी गई हैं। सभी कार्यक्रमों के तहत प्रतिबद्ध संचयी अनुदान सहायता 2872.98 करोड़ रुपये है, जिसमें से 30 जून 2024 तक 2250.77 करोड़ रुपये की राशि जारी की जा चुकी है। 30 जून 2024 तक, 28 राज्यों में 805 वाटरशेड विकास और संबंधित परियोजनाएं कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं।

वाटरशेड विकास और संबंधित परियोजनाएं

वाटरशेड विकास के तहत, वर्तमान में कार्यान्वित किए जा रहे विभिन्न उप-कार्यक्रम निम्नानुसार हैं:

  • • i. जलवायु प्रूफिंग के साथ एकीकृत वाटरशेड विकास (सीएसआर सहयोग परियोजनाओं सहित)
  • • ii. कृषि विज्ञान-जीवा
  • • iii. पूर्ण वाटरशेड परियोजनाओं में जलवायु प्रूफिंग (डब्ल्यूडीएफ-सीपी)
  • • iv. पूर्वोत् तर और पहाड़ी क्षेत्र में स्प्रिंगशेड विकास कार्यक्रम।
  • • v. गैर-पनधारा आधार पर शुष्क भूमि/पनधारा क्षेत्रों में मृदा एवं जल संरक्षण संवर्धनात्मक उपाय तथा अन्य कृषि पद्धतियां।
  • • vi. पंजाब और हरियाणा में वाटरशेड/लैंडस्केप दृष्टिकोण के साथ वर्षा जल प्रबंधन के माध्यम से क्षारीय मिट्टी के सुधार पर पायलट परियोजनाएं।
  • • vii. केएफडब्ल्यू, जर्मनी के माध्यम से खाद्य सुरक्षा के लिए मृदा बहाली और अवक्रमित मिट्टी का पुनर्वास (जलवायु प्रूफिंग मृदा परियोजना)
  • • viii. वाटरशेड परियोजनाओं की वेब-आधारित निगरानी

i. जलवायु प्रूफिंग के साथ एकीकृत वाटरशेड विकास (सीएसआर सहयोग परियोजनाओं सहित)

कार्यक्रम किए गए एकीकृत पनधारा विकास कार्यक्रम को दो चरणों में कार्यान्वित किया जाता है - (i) क्षमता निर्माण चरण (सीबीपी) और (ii) पूर्ण कार्यान्वयन चरण (एफआईपी) सहभागिता मोड में, जिसमें ग्राम पनधारा समितियों (वीडब्ल्यूसी) और परियोजना सुविधा एजेंसी (पीएफए) की सक्रिय भागीदारी होती है। ये परियोजनाएं 20 राज्यों आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में कार्यान्वित की जा रही हैं। 30 जून 2024 तक 1083.91 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ 1214 डब्ल्यूडीएफ परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिसमें से 731.86 करोड़ रुपये की राशि वितरित की गई है।

ii. कृषि विज्ञान-जीवा

जीवा एक कृषि-पारिस्थितिक परिवर्तन कार्यक्रम है, जिसे पहले से मौजूद प्राकृतिक और सामाजिक पूंजी का लाभ उठाते हुए वाटरशेड और आदिवासी विकास परियोजनाओं में एक रणनीतिक और परिवर्तनकारी दृष्टिकोण के रूप में कृषि पारिस्थितिकी को अग्रणी और स्केल करने के लिए वर्ष 2022 में शुरू किया गया है। इस तरह के परिवर्तन का प्रमुख पहलू किसानों के नेतृत्व वाले विस्तार के माध्यम से 'व्यवहार परिवर्तन' को प्रभावित करना है। अपनी तरह के पहले कार्यक्रम के रूप में, 11 राज्यों में कमजोर वर्षा सिंचित क्षेत्रों में पांच कृषि क्षेत्रों को कवर करते हुए वाटरशेड और जनजातीय क्षेत्रों सहित 24 पायलट परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। जीवा प्राकृतिक खेती को अपने प्रमुख सिद्धांत के रूप में अपनाता है, प्राकृतिक प्रगति (किसान-खेत-परिदृश्य) के बाद ग्रामीण पारिस्थितिकी तंत्र में पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था को संतुलित करता है। कृषि विज्ञान पर एफएओ ढांचे के अनुरूप डिजाइन किया गया, जीवा के तहत प्राकृतिक खेती प्रथाओं में विविध जलवायु लचीला फसल प्रणालियों (फसलों-पशुधन-पेड़ों), जैविक प्रक्रियाओं का कायाकल्प, कीट और पोषक तत्व प्रबंधन के प्राकृतिक तरीकों और वर्षा और मिट्टी की नमी के कुशल प्रबंधन को बढ़ावा मिलता है। प्रणाली के केंद्र में मिट्टी रखते हुए, जीवीए स्थानीय समुदायों को प्रकृति के साथ सद्भाव में काम करके सकारात्मक प्रभाव पैदा करके अपने पर्यावरण और कल्याण की रक्षा और सुधार करने में सक्षम करेगा। पायलट परियोजनाओं की सफलता के आधार पर, उन्हें अगले चरण यानी उन्नयन और समेकन चरण में स्नातक होने की उम्मीद है। इसके अलावा, आने वाले वर्षों में प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन परियोजनाओं में वृद्धि की उम्मीद है, इस प्रकार कृषि उन्मुखीकरण प्रदान किया जा सकता है। 30 जून 2024 तक 4.2 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ 15 जीवा परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिसके सापेक्ष 4.07 करोड़ रुपये की राशि वितरित की गई है।

iii. पूर्ण वाटरशेड परियोजनाओं (डब्ल्यूडीएफ-सीपी) में जलवायु-प्रूफिंग

किसानों के उत्पादन, उत्पादकता और आजीविका पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के प्रति वाटरशेड समुदाय की संवेदनशीलता को कम करने के लिए, नाबार्ड 11 राज्यों (बिहार, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तराखंड) में डब्ल्यूडीएफ के तहत अपनी वाटरशेड परियोजनाओं में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पहल को लागू कर रहा है। इन परियोजनाओं की योजना और डिजाइन वाटरशेड समुदायों द्वारा कृषि और संबद्ध गतिविधियों के विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन भेद्यता मूल्यांकन के आधार पर तैयार किया गया है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के प्रति क्षेत्रों और समुदाय की संवेदनशीलता के आधार पर, परियोजना हस्तक्षेपों की पहचान वाटरशेड समुदायों द्वारा की जाती है और डब्ल्यूडीएफ के तहत नाबार्ड से वित्तीय सहायता के साथ कार्यान्वित की जाती है। इस पहल के तहत मुख्य उपायों में हॉट स्पॉट क्षेत्रों में अतिरिक्त मृदा और जल संरक्षण उपाय, मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता में वृद्धि, टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना, जोखिम शमन और ज्ञान प्रबंधन आदि शामिल हैं। 30 जून 2024 तक, 100.58 करोड़ रुपये की वित्तीय प्रतिबद्धता के साथ 207 जलवायु प्रूफिंग परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिनमें से 92.44 करोड़ रुपये 11 राज्यों में जारी किए गए हैं।

iv. पूर्वोत्तर और पहाड़ी क्षेत्रों में स्प्रिंगशेड विकास कार्यक्रम

हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव के कारण, झरने, जो पूर्वोत्तर क्षेत्र की जीवन रेखा हैं (एनईआर) क्षेत्र सूख रहा है जिससे कृषि और ग्रामीण समुदाय की आजीविका प्रभावित हो रही है। पुनर्जीवित करने के लिए और इन झरनों का कायाकल्प करें और मानव के लिए पानी की उपलब्धता पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव को कम करें। खपत और सिंचाई, विशेष रूप से ऑफ-सीजन के दौरान, नाबार्ड ने एक अभिनव और एकीकृत लॉन्च किया है वित्तीय सहायता के साथ सिक्किम सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्प्रिंगशेड-आधारित भागीदारी वाटरशेड विकास कार्यक्रम जनवरी 2017 से डब्ल्यूडीएफ के तहत। इन परियोजनाओं को 16 राज्यों (अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, ओडिशा, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखंड) तक बढ़ाया गया है । 30 जून 2024 तक 35.87 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ 157 स्प्रिंगशेड विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिसके सापेक्ष 23.64 करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं।

v. गैर-पनधारा आधार पर शुष्क भूमि/वाटरशेड क्षेत्रों में मृदा एवं जल संरक्षण संवर्धनात्मक उपाय तथा अन्य कृषि पद्धतियां

मृदा और जल संरक्षण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण-जलवायु अनुकूल और जलवायु स्मार्ट कृषि का प्रदर्शन, जैविक खेती को बढ़ावा देने, वर्मी कम्पोस्टिंग, मधुमक्खी पालन, मशरूम की खेती, रेशम कीट पालन आदि से संबंधित स्थान विशिष्ट गतिविधियों के कार्यान्वयन के साथ-साथ एनआरएम क्षेत्र के तहत विकासात्मक और संवर्धनात्मक कार्यकलापों के भाग के रूप में क्षमता निर्माण, अभियान मोड के माध्यम से जागरूकता सृजन आदि के लिए डब्ल्यूडीएफ कॉर्पस का उपयोग किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में। इन कार्यकलापों को केन्द्रीय/राज्य/नाबार्ड सहायता प्राप्त कार्यक्रमों के अंतर्गत वर्षासिंचित/शुष्क भूमि क्षेत्रों/पूर्ण हो चुकी पनधारा परियोजनाओं में परियोजना/कार्यक्रम मोड के साथ-साथ गैर-परियोजना मोड पर कार्यान्वित किया जा सकता है। 30 जून 2024 तक 3.77 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ 34 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिसमें से 3.23 करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं।

vi. पंजाब और हरियाणा में वाटरशेड/लैंडस्केप दृष्टिकोण के साथ वर्षा जल प्रबंधन के माध्यम से क्षारीय मिट्टी के सुधार पर पायलट परियोजनाएं

हरित क्रांति के बाद कृषि आदानों विशेषकर जल और उर्वरक के अंधाधुंध उपयोग के परिणामस्वरूप पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भूमि का गंभीर क्षरण हुआ है जिससे क्षारीय मिट्टी का निर्माण हुआ है। सहभागी दृष्टिकोण के माध्यम से क्षारीय मिट्टी की दीर्घकालिक स्थिरता को प्रदर्शित करने के लिए, केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई), करनाल की तकनीकी सहायता से पंजाब और हरियाणा में वाटरशेड/लैंडस्केप दृष्टिकोण के साथ वर्षा जल प्रबंधन के माध्यम से क्षारीय मिट्टी के सुधार पर पायलट परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं। यह क्षारीय मिट्टी के पुनर्ग्रहण के लिए 2000 हेक्टेयर के क्षेत्र को कवर करता है। पंजाब और हरियाणा में क्षारीय मिट्टी के सुधार के लिए चार पायलट परियोजनाएं पंजाब के पटियाला और संगरूर जिलों में आधारित थीं; और हरियाणा में कैथल और करनाल। 30 जून 2024 तक, 7.49 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ 4 पायलट परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिसके खिलाफ 6.50 करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं।

(vii) केएफडब्ल्यू, जर्मनी के माध्यम से खाद्य सुरक्षा के लिए अवक्रमित मृदा का मृदा पुनरूद्धार और पुनर्वास (जलवायु प्रूफिंग मृदा परियोजना)

नाबार्ड, केएफडब्ल्यू के सहयोग से, 2017 से 'अवक्रमित मिट्टी के पुनर्वास और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए वाटरशेड विकास का एकीकरण' परियोजना को लागू कर रहा है। इस परियोजना को जर्मन सरकार (बीएमजेड) से उसकी पहल "वन वर्ल्ड- नो हंगर" (एसईडब्ल्यूओएच) के तहत विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील समुदायों वाले क्षेत्रों में अवक्रमित मिट्टी के पुनर्वास और उत्थान के लिए समर्थन के लिए अनुमोदित किया गया था। इस परियोजना में वाटरशेड में समुदायों की अनुकूली क्षमता को मजबूत करने और प्राकृतिक संसाधनों, मुख्य रूप से मिट्टी के संरक्षण में निवेश के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रति उनकी लचीलापन बढ़ाने की परिकल्पना की गई है।

इस परियोजना को केएफडब्ल्यू, नाबार्ड द्वारा सह-वित्तपोषित किया जाता है और वाटरशेड स्तर पर निवेश के लिए लाभार्थियों का योगदान (नकद में/वस्तु के रूप में )। तीन चरणों के लिए परियोजना के तहत केएफडब्ल्यू द्वारा प्रदान किया गया कुल अनुदान € 19.5 मिलियन (143.75 करोड़ रुपये) है। केएफडब्ल्यू द्वारा दिया गया अनुदान नाबार्ड के माध्यम से ग्राम पनधारा समितियों और कार्यान्वयन एजेंसियों को जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन के लिए भेजा जाता है। यह परियोजना 10 राज्यों में 226 वाटरशेड को कवर करते हुए तीन चरणों में कार्यान्वित की गई है, जिनमें से चरण 1 के तहत 123 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं। SEWOH I को आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, ओडिशा और तेलंगाना में लागू किया गया था, SEWOH II को केरल और झारखंड में और SEWOH III को बिहार, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में लागू किया गया था। 30 जून 2024 तक, चरण 3 के तहत 26.96 करोड़ रुपये की राशि का उपयोग किया गया है।

(viii) वाटरशेड परियोजनाओं की वेब आधारित निगरानी

नाबार्ड ने भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाकर वाटरशेड परियोजनाओं की निगरानी के लिए राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी), हैदराबाद के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। इस पहल के तहत, परियोजना सुविधा एजेंसियों (पीएफए) द्वारा डेटा अपलोड करने के लिए एक वेब पोर्टल और मोबाइल ऐप विकसित किया गया है। यह पोर्टल नाबार्ड को उपग्रह चित्रों के विश्लेषण, वास्तविक समय के आधार पर एमआईएस रिपोर्ट तैयार करने और मैपिंग के साथ-साथ मोबाइल ऐप के माध्यम से परियोजना क्षेत्रों में बनाई गई परिसंपत्तियों की जियो-टैगिंग के माध्यम से वाटरशेड परियोजनाओं ('प्री' और 'पोस्ट' चरणों) की वास्तविक और वित्तीय प्रगति और प्रभाव मूल्यांकन (परिवर्तन का पता लगाने) की वास्तविक समय ट्रैकिंग की सुविधा प्रदान कर रहा है। 30 जून 2024 तक, कुल 1160 परियोजनाओं का डिजिटलीकरण किया गया, जिसमें 1,79,824 परिसंपत्तियों को जियोटैग किया गया और 688 भाव मूल्यांकन अध्ययन किए गए।

ख. 30 June 2024 तक नाबार्ड द्वारा समर्थित किसान उत्पादक संगठन

  • स्वीकृत परियोजनाओं की कुल संख्या: 1026
  • कार्यक्रम के तहत शामिल राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या: 29
  • लाभान्वित आदिवासी परिवारों की संख्या: 6.27 लाख
  • कुल क्षेत्रफल: 5.86 लाख एकड़
  • टीडीएफ से स्वीकृत कुल वित्तीय सहायता: 2838.91 करोड़ रुपये
  • कुल वित्तीय सहायता वितरित: 2055.88 करोड़ रुपये

ग . कृषक उत्पादक संगठनों का संवर्धन एवं विकास

1 संख्या। पंजीकृत एफपीओ की कुल संख्या 6056
2 संख्या। कुल शेयरधारक सदस्यों की संख्या 2472923
3 संख्या। एफपीओ क्रेडिट लिंक्ड की संख्या 1995
4 संख्या। एफपीओ बाजार से जुड़े लोगों की संख्या 3743
5 संख्या। पीओपीआई की संख्या 1356
6 संख्या। CBBOs की संख्या 110
7 संख्या। आरएसए 29
8 संख्या। एफपीओ की संख्या का डिजिटलीकरण 5248
9 संख्या। सदस्यों की संख्या का डिजिटलीकरण 2264956

31मई 2024 तक नाबार्ड द्वारा समर्थित किसान उत्पादक संगठन

करोड़ रुपये में

क्र.सं. क्ष.का. का नाम पंजीकृत एफपीओ की संख्या सदस्यों की संख्या
1 अंडमान और निकोबार 6 359
2 आंध्र प्रदेश 434 202320
3 अरुणाचल प्रदेश 13 3067
4 असम 153 38549
5 बिहार 287 117136
6 छत् तीसगढ़ 85 35482
7 गोवा 7 1132
8 गुजरात 286 118796
9 हरयाणा 105 47252
10 हिमाचल प्रदेश 145 32294
11 जम्मू और कश्मीर 94 11039
12 झारखंड 239 98194
13 कर्नाटक 398 212258
14 केरल 177 77629
15 मध्य प्रदेश 413 164376
16 महाराष्ट्र 487 159000
17 मणिपुर 27 8054
18 मेघालय 23 3907
19 मिजोरम 28 6947
20 नागालैंड 15 3575
21 नई दिल्ली 1 160
22 ओडिशा 394 170074
23 पंजाब 114 19535
24 राजस्थान 290 120300
25 सिक्किम 17 2404
26 तमिलनाडु 462 276505
27 तेलंगाना 391 159225
28 त्रिपुरा 3 560
29 उत्तर प्रदेश 444 153775
30 उत्तराखंड 130 43067
31 पश्चिम बंगाल 388 183987
कुल 6056 2472923

NABARD ने 'nabfpo.in' नामक एक पोर्टल विकसित किया है। हितधारकों द्वारा उपयोग के लिए सदस्यों के प्रोफाइल सहित एफपीओ डेटा को डिजिटाइज़ किया गया।

समग्र प्रदर्शन के मूल्यांकन और निगरानी के लिए प्रदर्शन ग्रेडिंग टूल विकसित किया गया है और मजबूत संगठन के निर्माण के लिए आवश्यकता आधारित हस्तक्षेप और क्रेडिट लिंकेज की डिजाइनिंग की सुविधा प्रदान करता है।

ऋण प्रवाह को बढ़ाने और बैंकों को एफपीओ की ऋण आवश्यकताओं के प्रकार के बारे में जागरूक करने के लिए, नाबार्ड ने बैंकों द्वारा एफपीओ के वित्तपोषण पर मार्गदर्शन नोट विकसित किया है।

घ. कृषि क्षेत्र संवर्धन निधि (एफएसपीएफ)

स्थापना के बाद से, एफएसपीएफ में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में अभिनव परियोजनाएं, कृषि उत्पादकता और किसानों की आय में वृद्धि करना, बाजार पहुंच का सृजन करना, कमजोर/संकटग्रस्त जिलों में जलवायु अनुकूल कृषि को बढ़ावा देना, कृषि मूल्य श्रृंखलाएं, किसान क्लब और किसानों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण सहित उनके समूह आदि जैसी विभिन्न संवर्धनात्मक पहल शामिल हैं। 30 जून 2024 तक, एफएसपीएफ के तहत संचयी रूप से Rs. 248.42 करोड़ रुपये की राशि वितरित की गई है।

फंड की स्थापना के बाद से, डीपीआर मोड के तहत 1969 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी, और इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए 136.61 करोड़ रुपये की अनुदान सहायता वितरित की गई है। वर्तमान में, 31 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 509 परियोजनाएं चल रही हैं।

सब्जी, फल और फूलों की खेती, एकीकृत कृषि प्रणाली, बागवानी प्रौद्योगिकी, पशुपालन, कृषि-मूल्य श्रृंखला विकास, कृषि में आईओटी, आईसीटी, एआई और एमएल, बाजरा और छद्म बाजरा की खेती को बढ़ावा देने, कृषि में ड्रोन प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग, हाइड्रोपोनिक्स प्रौद्योगिकी आदि के क्षेत्रों में नवीन प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन के लिए परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी।

निधि की स्थापना के बाद से, खेती के नए/अभिनव तरीकों को अपनाने के लिए केवीके, एसएयू, आईसीएआर और आईसीआरआईएसएटी आदि जैसे चुनिंदा अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से लगभग 82060 किसानों की क्षमता का निर्माण करने के लिए अब तक2799 एक्सपोजर दौरों का समर्थन किया गया है। एक्सपोजर दौरों के तहत कवर किए गए क्षेत्रों में कृषि-विस्तार सेवाएं, डेयरी फार्मिंग, एकीकृत कृषि विधियां, जैविक खेती, नई कृषि प्रौद्योगिकियां आदि शामिल थीं। 30 जून 2024 तक, प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए क्षमता निर्माण (कैट) के तहत Rs. 22.48 करोड़ रुपये की राशि वितरित की गई है।

संपर्क जानकारी

श्री बी. उदय भास्कर
मुख्य महाप्रबंधक
नाबार्ड, प्रधान कार्यालय
5 वीं मंजिल, 'ए' विंग
प्लॉट: सी -24, 'जी' ब्लॉक
बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स, बांद्रा (पूर्व)
मुंबई - 400 051
टेलीफोन (+91) 022 - 26539569
ई-मेल पता: fsdd@nabard.org , bu.bhaskar@nabard.org

आरटीआई के तहत जानकारी – धारा 4 (1) (बी)