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कृषि क्षेत्र विकास विभाग

नाबार्ड के तत्कालीन विकास नीति विभाग – कृषि क्षेत्र से कृषि क्षेत्र विकास विभाग(एफ़एसडीडी) की स्थापना की गई.

इस विभाग की स्थापना का उद्देश्य निम्नलिखित विभिन्न कार्यक्रमों के अधीन नीतियों को तैयार करना और विविध प्रकार के पहलों का कार्यान्वयन करना है:

  • प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन
  • ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं के आधारस्तरीय ऋण को गति प्रदान करना
  • कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि का प्रसार करना
  • ग्रामीण रोज़गार के अवसर पैदा करनाअवसर पैदा करना
  • ऋण और अनुदान के माध्यम से ग्रामीण ग़रीबों के जीवन में सुधार लाना
  • भारत सरकार के समग्र नीति के अंतर्गत कृषि और कृषि अनुषंगी क्षेत्रों से संबंधित उपयुक्त नीतियों को तैयार करना, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन का अनुकूलन और इसके प्रभावों को कम करना
  • जलवायु परिवर्तन का अनुकूलन और इसके प्रभावों को कम करना

कृषि क्षेत्र विकास विभाग निम्नलिखित निधियों का प्रबंधन करता है

  • वाटरशेड विकास विभाग (डबल्यूडीएफ़)
  • जनजाति विकास निधि (टीडीएफ़)
  • उत्पादक संगठन विकास निधि (पीओडीएफ़)
  • केंद्रीय कृषक उत्पादक संगठन (एफ़पीओ) प्रवर्तन और संवर्धन योजना
  • कृषि क्षेत्र प्रवर्तन निधि (एफ़एसपीएफ़)

विभाग के प्रमुख कार्य

i. वाटरशेड विकास निधि (डबल्यूडीएफ़)

खाद्यान्न उत्पादन में वर्षा सिंचित क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका है. कुल बुवाई क्षेत्र में इसकी 51% भागीदारी है और कुल खाद्यान्न उत्पादन में इसकी भागीदारी 40-45% है. वर्षा सिंचित कृषि की समस्याओं को दूर करने के लिए नाबार्ड ने केएफ़डबल्यू सहायता प्राप्त महाराष्ट्र में इंडो-जर्मन वाटरशेड विकास कार्यक्रम (आईजीडबल्यूडीपी) वर्ष 1992 में वाटरशेड विकास के क्षेत्र में प्रवेश किया. इसमें पहली बार बड़े पैमाने पर वाटरशेड विकास के सहभागी दृष्टिकोण को अपनाया गया.

इंडो-जर्मन वाटरशेड विकास कार्यक्रम (आईजीडबल्यूडीपी) के अंतर्गत सहभागी वाटरशेड विकास के सफल कार्यान्वयन के आधार पर वर्ष 1999-2000 में नाबार्ड में रु.200 करोड़ की आरंभिक निधि से वाटरशेड विकास निधि (डबल्यूडीएफ़) का गठन किया गया. इस राशि में भारत सरकार और नाबार्ड की बराबर हिस्सेदारी है. ग्रामीण आधारभूत विकास निधि (आरआईडीएफ़) के अधीन वर्षों के दौरान अर्जित विभेदक ब्याज की राशि से इस निधि का संवर्धन किया जाता है.

ii. जनजाति विकास निधि (टीडीएफ़)

आदिवासी विकास कार्यक्रमों के सफल अनुभव के आधार पर नाबार्ड ने देश भर में एक या दो एकड़ के बगीचों के प्रसार के लिए वर्ष 2003-04 के लाभ में से रु.50 करोड़ की आरंभिक निधि से आदिवासी विकास निधि (टीडीएफ़) का गठन किया. कालांतर में यह निधि बढ़ कर 31 अक्तूबर 2025 को रु. 1058.51 करोड़ हो गई जिसमें रु. 669.57 करोड़ की स्वीकृत स्वीकृति शामिल है. जनजाति विकास निधि के अंतर्गत राज्य सरकारों, कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके), ग़ैर सरकारी संगठनों और कारपोरेट्स के साथ मिल कर परियोजनाओं का कार्यान्वयन किया जाता है. जनजाति वर्ग की आजीविका में सुधार लाने के लिए एक संपुष्ट बगीचे का विकास इस जनजाति विकास कार्यक्रम का केंद्र होता है. इन वर्षों में भूमिहीन जनजाति वर्ग के परिवारों के लिए पशुपालन, रेशम उत्पादन, लाख, एनटीएफ़पी आदि को भी आजीविका हस्तक्षेपों में शामिल किया गया है.

iii. कृषक उत्पादक संगठनों का संवर्धन

कृषक उत्पादक संगठन कानूनी संस्थान होते हैं जिनका गठन कृषक, दूध उत्पादक, मत्स्यपालक, बुनकर, ग्रामीण कारीगर, शिल्पकार आदि करते हैं. उत्पादकों की शुद्ध आय को बढ़ाने के उद्देश्य से छोटे उत्पादकों को कृषि मूल्य शृंखला से जोड़ने में कृषक उत्पादक प्रभावशाली बन गए हैं. नाबार्ड निम्नलिखित कार्यक्रमों के माध्यम से कृषक उत्पादक संगठनों को वित्तीय और विकासात्मक सहायता प्रदान करता है.

i. उत्पादक संगठन विकास निधि (पीओडीएफ़)

उत्पादक संगठनों की शक्ति को पहचानते हुए नाबार्ड ने वर्ष 2011 में ऋण सुविधा, क्षमता विकास और बाज़ार से जोड़ने जैसे तीनों स्तरों पर इन संगठनों की सहायता करने के लिए नाबार्ड ने अलग से एक “उत्पादक, संगठन विकास निधि (पीओडीएफ़) निधि का गठन किया. इसके साथ-साथ व्यापार उद्भवन सेवाएँ – बिज़नेस इंक्यूबेशन सर्विसेस, कौशल विकास, सफल मॉडेलों का प्रलेखन, व्यापार प्रबंधन आदि में आईसीटी अप्लीकेशन भी उपलब्ध कराया जाता है. नाबार्ड ने 3000 कृषक उत्पादक संगठनों के प्रवर्तन और पोषण के लिए कृषक संगठन विकास निधि – विभेदक ब्याज (पीओडीएफ़-आईडी) नमक नई योजना भी शुरू की है. आधारभूत ग्रामीण विकास निधि के विभेदक ब्याज की राशि से विनयोजित किए जाने के कारण इसे ऐसा नाम दिया गया.

ii. केंद्रीय कृषक उत्पादक संगठन (एफ़पीओ) प्रवर्तन और संवर्धन योजना

भारत सरकार ने देश में 10,000 कृषक उत्पादक सगठनों के गठन और संवर्धन हेतु केंद्रीय कृषक उत्पादक संगठन (एफ़पीओ) प्रवर्तन और संवर्धन योजना की घोषणा की है और कार्यान्वयक संस्थाओं में नाबार्ड एक है. योजना का लक्ष्य नए कृषक उत्पादकों का गठन करना और इनकी आरंभिक वित्तीय आवश्यकताओं के लिए सहायता प्रदान करना है ताकि वे ऋण योग्य, वाणिज्यिक रूप से जीवंत बना सके और किसानों के लिए एक संधारणीय व्यापार उद्यम के रूप में उन्हें तैयार किया जा सके. केंद्रीय कृषक उत्पादक संगठन (एफ़पीओ) प्रवर्तन और संवर्धन योजना के लिए बैंकर ग्रामीण विकास संस्थान (बर्ड), लखनऊ को नोडल प्रशिक्षण संस्थान के रूप में पहचान की गई है. नाबार्ड की सहायक कंपनी नैबसंरक्षण के अधीन रु.1,000 की राशि से ऋण गारंटी निधि का गठन किया गया है जिसमें भारत सरकार और नाबार्ड की समान भागीदारी है.

iv. कृषि क्षेत्र प्रवर्तन निधि – फ़ार्म सेक्टर प्रमोशन फ़ंड (एफ़एसपीएफ़)

नाबार्ड में कृषि क्षेत्र प्रवर्तन निधि फ़ार्म सेक्टर प्रमोशन फ़ंड (एफ़एसपीएफ़) की स्थापना 26 जुलाई 2014 को तत्कालीन दो निधियों – कृषि नवप्रवर्तन प्रसार निधि – फ़ार्म इन्नोवेशन एंड प्रमोशन फ़ंड (एफ़आईपीएफ़) और कृषक प्रौद्योगिकी अंतरण निधि – फ़ार्मर्स टेक्नोलोजी ट्रांस्फर फ़ंड (एफ़टीटीएफ़) का विलय कर के की गई थी. यह निधि कृषि और अनुषंगी क्षेत्रों में उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए नवप्रवर्तनशील और व्यवहार्य संकल्पनाओं / परियोजनाओं के प्रसार और प्रौद्योगिकी अंतरण पर अधिक बल देती है.

विभाग की व्यापक उपलब्धियां (31 अक्तूबर , 2025 तक)

क. लैंडस्केप आधारित रिजनरेटिव रेसिलिएंट रेनफेड इकोसिस्टम विकास कार्यक्रम (एलआरईडीपी)

वाटरशेड विकास कार्यक्रम को लैंडस्केप आधारित रिजनरेटिव रेसिलिएंट रेनफेड इकोसिस्टम विकास कार्यक्रम (एलआरईडीपी) के रूप में रीवैम्‍प किया गया है, जिसका उद्देश्‍य जलवायु-अनुकूल, कृषि-पारिस्थितिक दृष्टिकोण के माध्‍यम से भारत की वर्षा आधारित कृषि को पुनर्जीवित करना है. इसके अंतर्गत संधारणीय विकास लक्ष्यों (एसडीजी), राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (एनडीसी) और भूमि क्षरण तटस्थता (एलडीएन) के साथ तालमेल बिठाते हुए जल संरक्षण, मृदा संपोषण और आजीविका सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जाता है. कुल मिलाकर, 27.2 लाख हेक्टेयर के क्षेत्रफल को कवर करते हुए ₹ 2376.30 करोड़ के संचयी संवितरण के साथ 3771 वाटरशेड विकास और संबंधित परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है. 31 अक्तूबर 2025 की स्थिति के अनुसार 29 राज्यों में 684 वाटरशेड विकास और संबंधित परियोजनाएं कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं.

i. जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए स्प्रिंगशेड विकास कार्यक्रम

स्प्रिंगशेड आधारित वाटरशेड विकास कार्यक्रम को इसके व्यापक दायरे को देखते हुए जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए स्प्रिंगशेड विकास कार्यक्रम के रूप में रीवैम्‍प किया गया है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य है हिमालय, पूवोत्तर क्षेत्र (एनईआर) और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में सूख रहे झरनों को फिर से जीवंत करना, जिससे पीने के पानी की आपूर्ति और खेती के लिए सिंचाई के पानी की उपलब्धता में वृद्धि हुई और इन नाज़ुक परितंत्रों में ग्रामीण समुदाय लाभान्वित हुए. 31 अक्तूबर 2025 की स्थिति के अनुसार पूर्वोत्तर क्षेत्र एवं सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा और उत्तराखंड के अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में ₹ 34.34 करोड़ के संचयी संवितरण के साथ 163 स्प्रिंगशेड विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है.

ii. कृषि पारिस्थितिकी-जीवा

जीवा, प्राकृतिक खेती के प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित एक कृषि पारिस्थितिकी कार्यक्रम है जिसे 11 राज्यों की 24 परियोजनाओं में प्रायोगिक आधार पर चलाया गया था, जो पाँच कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्रों में फैले हुए हैं. यह पहल पारिस्थितिक रूप से स्वस्थ कृषि प्रणालियों को बढ़ावा देने के माध्‍यम से पूरे हो चुके वाटरशेडों और बगीचा-आधारित आजीविका (वाडी) परियोजनाओं में किए गए सहयोगों की दीर्घकालिक संधारणीयता सुनिश्चित करने पर केंद्रित है. जीवा विविध फसल प्रणालियों, किचन-गार्डन, कृषि-वानिकी, पशुधन और प्राकृतिक खेती को एकीकृत कर समग्र कृषि प्रबंधन का संवर्धन करती है, जबकि खाद, जैव-उर्वरक और मल्चिंग जैसे जैविक-संसाधनों का उपयोग मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाता है, बहु-स्तरीय खेती को बनाए रखता है और पारिस्थितिकीय आघात-सह्यता और उत्पादकता को बढ़ाता है. 31 अक्तूबर 2025 की स्थिति के अनुसार वाटरशेड और जनजाति विकास कार्यक्रमों के तहत 39 जीवा परियोजनाएँ चल रही हैं जिनके तहत ₹13.87 करोड़ की राशि संवितरित की गई है.

iii. क्षारीय मिट्टी के पुनरुद्धार पर प्रायोगिक परियोजना

पंजाब और हरियाणा में क्षारीय मिट्टी के पुनरुद्धार के लिए ₹7.49 करोड़ के वित्तीय परिव्‍यय के साथ वित्तीय वर्ष 2022 में चार प्रायोगिक परियोजनाओं को प्रारंभ किया गया था, जिसके 2,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल की भूमि शामिल की गई थी. स्‍थल-विशिष्‍ट जिप्सम की आवश्यकताओं का पता लगाने के लिए आईसीएआर-सीएसएसआरआई, करनाल द्वारा प्रत्येक लाभार्थी के खेत से मिट्टी के नमूनों का वैज्ञानिक मूल्यांकन किया गया था. ये परियोजनाएँ अब पूरी हो चुकी हैं और परिणामस्वरूप इन परियोजनाओं में मिट्टी के पीएच और विनिमेय सोडियम प्रतिशत (ईएसपी) में महत्‍वपूर्ण कमी हुई जो मिट्टी के स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार और चावल और गेहूँ की पैदावार में महत्‍वपूर्ण वृद्धि की द्योतक है. जिप्सम के लक्ष्‍योन्‍मुख अनुप्रयोग से न केवल मिट्टी की गुणवत्ता को पुनःस्थापित किया, बल्कि जल उपयोग दक्षता और फसल उत्पादकता को भी बढ़ाया, जिससे कृषक समुदायों की आर्थिक आघात-सह्यता और आजीविका में सीधे लाभ मिला.

iv. खाद्य सुरक्षा के लिए मृदा पुन:प्राप्ति और क्षयग्रस्‍त मृदाओं का पुनरुद्धार (जलवायु प्रूफिंग मृदा परियोजना) - केएफडब्ल्यू, जर्मनी के माध्यम से

नाबार्ड, केएफडब्ल्यू के सहयोग से वर्ष 2017 से ‘क्षयग्रस्त मृदाओं के पुनरुद्धार और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए वाटरशेड विकास का एकीकरण’ परियोजना को कार्यान्वित कर रहा है. "वन वर्ल्ड-नो हंगर" (SEWOH) के तहत जर्मन सरकार (BMZ) द्वारा सहायता प्राप्त, इस परियोजना का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधन संरक्षण के माध्यम से क्षयग्रस्‍त मृदाओं का पुनरुद्धार करना और संवेदनशील समुदायों की अनुकूलन क्षमता को मजबूत करना है. केएफडब्ल्यू, नाबार्ड और लाभार्थियों द्वारा सह-वित्तपोषित, €19.5 मिलियन (₹143.75 करोड़) का कुल केएफडब्ल्यू अनुदान नाबार्ड के माध्यम से ग्राम वाटरशेड समितियों और कार्यान्वयन एजेंसियों को दिया जाता है. इस परियोजना में तीन चरणों में 10 राज्यों के 226 वाटरशेडों को कवर किया गया, जिन्हें 30 जून 2025 तक सफलतापूर्वक पूरा किया गया।

v. वाटरशेड परियोजनाओं की वेब-आधारित निगरानी

एनआरएससी द्वारा विकसित एक समर्पित भू-स्थानिक मंच, नाबार्ड भुवन पोर्टल का उपयोग वाटरशेड परियोजनाओं की प्रगति के अनुप्रवर्तान के लिए वर्ष 2015 से किया जा रहा है. इस पहल को मजबूत करने के लिए, नाबार्ड ने वेब-आधारित अनुप्रवर्तन और विश्लेषण करने के लिए एक इन-हाउस रिमोट सेंसिंग सेल (आरएससी) की स्थापना की है. 31 अक्तूबर 2025 तक की स्थिति के अनुसार 1,199 परियोजनाओं को पोर्टल पर शामिल किया गया है, जिसमें 2.17 लाख से अधिक आस्तियां सफलतापूर्वक जियोटैग की गई हैं. इसके अलावा, भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए 769 प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन किए गए हैं, जिससे परियोजना के परिणामों की प्रभावशीलता और पारदर्शिता बढ़ी है.

ख. 31 अक्तूबर 2025 की स्थिति के अनुसार जनजातीय विकास निधि (टीडीएफ)

  • • स्वीकृत परियोजनाओं की कुल संख्या: 1037
  • • कार्यक्रम के तहत शामिल राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या: 29
  • • लाभान्वित आदिवासी परिवारों की संख्या: 6.32 लाख
  • • कुल क्षेत्रफल: 5.79 लाख एकड़
  • • टीडीएफ से स्वीकृत कुल वित्तीय सहायता:₹ 2876.97 करोड़ रुपये
  • • कुल वित्तीय सहायता वितरित: ₹ 2207.39 करोड़ रुपये

ग . कृषक उत्पादक संगठनों का संवर्धन एवं विकास 31 अक्तूबर 2025

1 संख्या। पंजीकृत एफपीओ की कुल संख्या 6265
2 संख्या। कुल शेयरधारक सदस्यों की संख्या 29,93,626
3 संख्या। एफपीओ क्रेडिट लिंक्ड की संख्या 2980
4 संख्या। एफपीओ बाजार से जुड़े लोगों की संख्या 4585
5 संख्या। पीओपीआई की संख्या 1356
6 संख्या। CBBOs की संख्या 100
7 संख्या। आरएसए 29
8 संख्या। एफपीओ की संख्या का डिजिटलीकरण 6479*
9 संख्या। सदस्यों की संख्या का डिजिटलीकरण 28,45,841

*डिजिटलीकृत एफपीओ की संख्या में स्वीकृत एफपीओ/पंजीकृत होने वाले एफपीओ भी शामिल हैं।

31 अक्तूबर 2025 तक नाबार्ड द्वारा समर्थित किसान उत्पादक संगठन

करोड़ रुपये में

क्र.सं. क्ष.का. का नाम पंजीकृत एफपीओ की संख्या सदस्यों की संख्या
1 अण्डमान और निकोबार 6 821
2 आंध्र प्रदेश 453 2,23,539
3 अरुणाचल प्रदेश 22 4,087
4 असम 168 66,225
5 बिहार 291 1,35,707
6 छत्तीसगढ 93 41,005
7 गोवा 7 1,629
8 गुजरात 289 1,27,990
9 हरयाणा 125 50,947
10 हिमाचल प्रदेश 149 38,813
11 जम्मू और कश्मीर 95 20,353
12 झारखंड 253 1,21,306
13 कर्नाटक 399 2,27,826
14 केरल 197 87,117
15 मध्य प्रदेश 423 2,25,006
16 महाराष्ट्र 489 2,14,150
17 मणिपुर 30 11,513
18 मेघालय 23 4,067
19 मिजोरम 27 9,837
20 नगालैंड 14 5,074
21 नई दिल्ली 0 0
22 ओडिशा 409 2,26,544
23 पंजाब 114 23,901
24 राजस्थान 295 1,37,243
25 सिक्किम 16 2466
26 तमिलनाडु 468 3,10,246
27 तेलंगाना 403 1,74,249
28 त्रिपुरा 5 760
29 उत्तर प्रदेश 458 2,41,347
30 उत्तराखंड 139 48,382
31 पश्चिम बंगाल 405 2,11,476

कुल 6,265 29,93,626

NABARD ने 'nabfpo.in' नामक एक पोर्टल विकसित किया है। हितधारकों द्वारा उपयोग के लिए सदस्यों के प्रोफाइल सहित एफपीओ डेटा को डिजिटाइज़ किया गया।

समग्र प्रदर्शन के मूल्यांकन और निगरानी के लिए प्रदर्शन ग्रेडिंग टूल विकसित किया गया है और मजबूत संगठन के निर्माण के लिए आवश्यकता आधारित हस्तक्षेप और क्रेडिट लिंकेज की डिजाइनिंग की सुविधा प्रदान करता है।

ऋण प्रवाह को बढ़ाने और बैंकों को एफपीओ की ऋण आवश्यकताओं के प्रकार के बारे में जागरूक करने के लिए, नाबार्ड ने बैंकों द्वारा एफपीओ के वित्तपोषण पर मार्गदर्शन नोट विकसित किया है।

घ. कृषि क्षेत्र संवर्धन निधि (एफएसपीएफ)

स्थापना के बाद से, एफएसपीएफ में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में अभिनव परियोजनाएं, कृषि उत्पादकता और किसानों की आय में वृद्धि करना, बाजार पहुंच का सृजन करना, कमजोर/संकटग्रस्त जिलों में जलवायु अनुकूल कृषि को बढ़ावा देना, कृषि मूल्य श्रृंखलाएं, किसान क्लब और किसानों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण सहित उनके समूह आदि जैसी विभिन्न संवर्धनात्मक पहल शामिल हैं। 31 अक्तूबर 2025 तक, एफएसपीएफ के तहत संचयी रूप से Rs. 297.02 करोड़ रुपये की राशि वितरित की गई है।

फंड की स्थापना के बाद से, डीपीआर मोड के तहत 2076 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी, और इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए 169.97 करोड़ रुपये की अनुदान सहायता वितरित की गई है। वर्तमान में, 31 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 331 परियोजनाएं चल रही हैं।

इन परियोजनाओं को उच्च तकनीक वाली कृषि, उच्च घनत्व वाली रोपण तकनीक, पशुपालन, एकीकृत कृषि प्रणाली, प्रिसिश़न फॉर्मिंग, पॉलीहाउस तकनीक और वित्तपोषण मूल्य श्रृंखला विकास, कृषि में आईओटी, आईसीटी, एआई और एमएल, मौटे अनाज का मूल्य श्रृंखला विकास, कृषि में ड्रोन तकनीक का अनुप्रयोग, हाइड्रोपोनिक्स तकनीक आदि में नवोन्मेषी तकनीकों के प्रदर्शन के लिए मंजूरी दी गई थी.

निधि की स्थापना के बाद से, खेती के नए/अभिनव तरीकों को अपनाने के लिए केवीके, एसएयू, आईसीएआर और आईसीआरआईएसएटी आदि जैसे चुनिंदा अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से लगभग 84485 किसानों की क्षमता का निर्माण करने के लिए अब तक 2867 एक्सपोजर दौरों का समर्थन किया गया है। एक्सपोजर दौरों के तहत कवर किए गए क्षेत्रों में कृषि-विस्तार सेवाएं, डेयरी फार्मिंग, एकीकृत कृषि विधियां, जैविक खेती, नई कृषि प्रौद्योगिकियां आदि शामिल थीं।

संपर्क जानकारी

डॉ ए वी भवानी शंकर
मुख्य महाप्रबंधक
नाबार्ड, प्रधान कार्यालय
5 वीं मंजिल, 'ए' विंग
प्लॉट: सी -24, जी' ब्लॉक
बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स, बांद्रा (पूर्व)
मुंबई - 400 051
टेलीफोन 022-68120040
ई-मेल पता: fsdd@nabard.org

आरटीआई के तहत जानकारी – धारा 4 (1) (बी)

नाबार्ड प्रधान कार्यालय