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कृषीतर विकास विभाग

नाबार्ड की स्थापना के समय इसके लक्ष्य वाक्य – मिशन स्टेटमेंट में कृषीतर क्षेत्र के प्रसार को शामिल किया गया था. आजीवका के दूसरे विकल्पों को प्रोत्साहित करते हुए कृषि आय की निर्भरता कम करने की अत्यधिक आवश्यकता को देखते हुए इस क्षेत्र का महत्व बढ़ जाता है. इस क्षेत्र के विकास से कृषि क्षेत्र में संलग्न छोटे और सीमांत किसानों के शहरी क्षेत्रों में पलायन को कम करने में भी सहायता मिलेगी.

कृषीतर क्षेत्र विकास विभाग ने कृषीतर क्षेत्र के विकास के लिए कई प्रोत्साहनात्मक योजनाएँ बनाई और क्षेत्र क्षेत्रीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इन्हें विस्तृत आधार देने, इनमें सुधार लाने और तर्क संगत बनाने के लगातार प्रयास करता रहा है. कौशल विकास, विपणन के प्रसार की संभावनाएं, छोटे, कुटीर और ग्रामोद्योग, हथकरघा, हस्तशिल्प और अन्य ग्रामीण शिल्प और उत्पादकों को सामूहिक बिक्री के प्रति प्रोत्साहित करना और ग्रामीण इलाक़ों में सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देने पर बल दिया जाता रहा है.

प्रमुख कार्य

  • i. संधारणीय आजीविका गतिविधियों, अनुदान आधारित उत्पादों का विकास और पारिवारिक आमदनी बेहतर बनाने के लिए ग्रामीण ग़रीबों की क्षमता विकास करना.
  • ii. कृषीतर गतिविधियों के लिए ऋण प्रवाह को बेहतर बनाना.
  • iii. हथकरघा, हस्तशिल्प में कृषीतर उत्पादक संगठनों का विकास और संवर्धन, कौशल और उद्यम विकास, नवाचार को बढ़ाना, व्यापार उद्भवन केन्द्रों - बिजनेस इंक्यूबेशन सेंटर्स, विपणन (ग्रामीण हाट, ग्रामीण मार्ट, प्रदर्शनियाँ मेले आदि), चैनल पार्टनर्स का क्षमता विकास, कृषीतर क्षेत्र में क्षेत्र-विशिष्ट गतिविधियों पर संगोष्ठियों / कार्यशालाओं आदि के माध्यम से जानकारी के प्रचार के लिए सहायता प्रदान करना.

पात्र संस्थाएं

पंचायती राज संस्थाओं सहित सरकारी संस्थाएं, शीर्ष / राज्य स्तरीय निगम और मण्डल, व्यक्ति / व्यक्ति समूह, स्वयं सहायता समूह, स्वयं सहायता समूह संघ, कृषक क्लब – फ़ार्मर्स क्लब, कृषक क्लब संघ – फ़ार्मर्स क्लब फ़ेडरेशन, गतिविधि आधारित संयुक्त देयता समूह, ग़ैर सरकारी संगठन / सूक्ष्म वित्त संस्थान, न्यास – ट्रस्ट्स, पंजीकृत समुदाय आधारित संगठन – रजिस्टर्ड कम्यूनिटी बेस्ड ऑर्गनाइज़ेशन्स, पंजीकृत उत्पादक संगठन / जन संगठन, (प्राथमिक कृषि ऋण समितियों सहित) सहकारी संस्थाएं, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम – नेशनल स्किल डेवलपमेंट कारपोरेशन (एनएसडीसी) संबद्ध प्रशिक्षण संस्थाएं, कौशल विकास परिषद, ग्रामीण विकास स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थाएं /ग्रामीण स्वरोज़गार प्रशिक्षण संस्थाएं, कारपोरेट्स, स्वामित्व कंपनियाँ / साझेदारी / धारा 8 कंपनियों सहित प्राइवेट लिमिटेड / पब्लिक लिमिटेड आदि, ग़ैर बैंकिंग वित्त कंपनियाँ, कारपोरेट सामाजिक दायित्व के रूप में निजी कंपनियाँ, महाविद्यालय, शोध संस्थाएं, विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके) , विपणन संघों, कॉमोडिटी बोर्ड, नाबार्ड की सहायक कंपनियाँ और कृषीतर क्षेत्र के प्रसारात्मक हस्तक्षेप करने के इच्छुक संस्थाएं जो सहायता के लिए नाबार्ड से संपर्क करती हैं, कृषीतर क्षेत्र के विकास के उद्देश्य से कार्यरत / नाबार्ड द्वारा अनुमोदित गतिविधियों में संलग्न.

नाबार्ड के कृषीतर विकास विभाग के पहल

i) कौशल विकास

भारत सरकार के लक्ष्य के अनुरूप, मांग और परिणाम-आधारित कार्यक्रमों के माध्यम से नाबार्ड ने ग्रामीण भारत में कौशल के अंतर को दूर करने के लिए एक संरचनात्मक दृष्टिकोण विकसित की है कौशल विकास परितंत्र के विविध हितधारकों के माध्यम से नाबार्ड ने कौशल हस्तक्षेपों के पूर्ण डिजिटाइज़ेशन के लिए एक डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म “नैबस्किल” (www.nabskillnabard.org) भारत सरकार के लक्ष्य के अनुरूप, ग्रामीण भारत में कौशल की कमी की समस्या को दूर करने के लिए कौशल विकास पारितंत्र में बहु-हितधारकों के माध्यम से नाबार्ड ने मांग और परिणाम-आधारित कार्यक्रमों को संरचनात्मक दृष्टिकोण का विकास किया है जिससे रोजगार / स्वरोज़गार के अवसर पैदा होते हैं. नाबार्ड ने कौशल हस्तक्षेपों के पूर्ण डिजिटाइज़ेशन के लिए डिजिटल प्लैटफ़ार्म “नैबस्किल” का विकास किया.

ii) कृषीतर उत्पादक संगठन (ओएफ़पीओ)

ग्रामीण उद्यम के संवर्धन, यांत्रिकीकरण, प्रौद्योगिकी को अपनाने, सुदृढ़ उत्पादन पूर्व और उत्पादन उपरांत व्यवस्थाओं के विकास, बेहतर आमदनी प्राप्त करने, बेहतर लाभ वितरण के प्रसार के लिए कारीगर, शिल्पकार, बुनकर आदि औपचारिक ग्रामीण संस्थाएं अर्थात कृषीतर उत्पादक संगठनों का गठन करते हैं जिससे अंतत: समूहिकीकरण के माध्यम से संधारणीयता और समवेशी विकास होता है.

iii) भौगोलिक संकेतों – जिओग्राफ़िकल उत्पादों का प्रसार

भौगोलिक संकेत एक बौद्धिक संपदा अधिकार है जो स्थान-विशिष्ट और एक विशेष प्रकृति, गुणवत्ता और स्थान-विशेष के लक्षण लिए होते हैं. भौगोलिक संकेत – जीआई अधिकार ऐसा अधिकार होता है जिससे इस अधिकार का धारक उस उत्पाद संबंधी लागू मानकों का पालन न करने वाले तृतीय पक्ष को उसके उपयोग से रोक सकता है. भौगोलिक संकेत – जीआई ग्रामीण विकास, समुदायों के सशक्तिकरण, इसी प्रकार के उत्पादों को अन्य से अलग करने, ब्रैंड निर्माण, स्थानीय रोज़गार पैदा करने, ग्रामीण पलायन को कम करने, क्षेत्रीय ब्रैंड के निर्माण करने, पर्यटन और पाक-काला, पारंपरिक ज्ञान और पारंपरिक सांकृतिक अभिव्यक्ति और जैव-विविधता के संरक्षण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

iv) विपणन पहल

ग्रामीण शिल्पकारों और उत्पादकों की सहायता और उन्हें बाज़ार तक लाने और नए बाज़ारों तक उत्पादों को पहुंचाने, ग्राहकों द्वारा अदा किए गए अंतिम मूल्य में इनका हिस्सा बढ़ाने और प्रभावी रूप से उनके उत्पादों के विपणन के लिए ग्रामीण हाट और ग्रामीण मार्टों की स्थापना, मॉल में स्टॉल्स लगवाने के लिए नाबार्ड वित्तीय सहायता प्रदान करता है और प्रदर्शनियों को प्रायोजित करता है.

क) ग्रामीण हाट

ग्रामीण हाट ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापार केंद्र के रूप में कार्य करते हैं. ग्रामीण हाट नियमित अवधि पर लगते हैं और ग्रामीण-से-ग्रामीण व्यापार को बढ़ावा देते हैं. व्यपार के अवसर प्रदान करने के साथ-साथ ग्रामीण हाट ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में यह महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा करते रहे हैं.

नाबार्ड इन बाज़ारों में उत्पादकों को अपने कृषि अधिशेष और संबंधित चीजों की बिक्री करने और स्थानीय उपभोक्ताओं को उन्हीं के आसपास चीजों की ख़रीदी के लिए ग्रामीण हाट की सहायता करता है. ग्रामीण हाट ग्रामीण भारत में पारंपरिक हैपर मार्केट भी कहलाते हैं.

ख) ग्रामीण मार्ट

नाबार्ड ग्रामीण मार्टों की स्थापना में सहायता प्रदान करता है जोकि उत्पादकों / शिल्पकारों / बुनकरों को अपने स्थानीय निर्मित उत्पादों की बिक्री का खुदरा बाज़ार केंद्र होता है. इस योजना का उद्देश्य शिल्पकारों, बुनकर और कृषि आधारित उत्पादों के विपणन में सहायता प्रदान करना है.

ग्रामीण मार्ट न केवल बाज़ार उपलब्ध कराता है बल्कि इससे उत्पादकों में उद्यमशीलता के संवर्धन में भी सहायता मिलती है.

ग) प्रदर्शनियाँ / मेले

प्रदर्शनियाँ / मेले शिल्पकारों, बुनकर कृषीतर उत्पादक संगठनों तथा स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को ग्राहकों के साथ प्रत्यक्ष रूप से जुड़ने, उनकी आवश्यकताओं को समझने के लिए एक विशिष्ट मंच प्रदान करता है और इससे वए अपने उत्पादों की बिक्री से अतिरिक्त आमदनी अर्जित कर सकते हैं.

प्रदर्शनियाँ / मेले सहभागियों को थोक खरीददारों से जोड़ते हैं और ग्रामीण उत्पादों की बिक्री में बिचौलियों की भूमिका को मिटा देते हैं. प्रदर्शनियों / मेलों से शहरी उपभोक्ताओं में ग्रामीण उत्पादों के प्रति जागरूकता आती है. इन प्रदर्शनियों में भाग लेने से शिल्पकार चुनौतियों से निपटने में सशक्त होते हैं, एक-दूसरे से सीखने और अपने उत्पादों के लिए बेहतर दाम प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन विकसित करने में उन्हें सहायता मिलती है.

घ) मॉल में स्टाल

अच्छी भीड़-भाड़ वाले प्रतिष्ठित मॉल, स्टॉल्स, बड़े दुकानों, बाज़ार संकुलों, होटलों और प्रमुख परिसरों में भाड़े पर और अथवा अस्थाई स्टॉल्स लगाने के लिए सहायता प्रदान करने के लिए एक नवोन्मेषी योजना ‘मॉल में स्टॉल’ आरंभ की गई. इससे ग्रामीण उत्पादक को मूल्य निर्धारण, ग्राहक की पसंद, बदलते डिज़ाइन की आवश्यकता और ई-मार्केटिंग आदि को सीखने में मदद मिलेगी. इस पहल से बी टू बी बैठकों के आयोजन में और कारीगरों तथा बुनकरों को सीधे ऑर्डर प्राप्त करने में सहायता मिलेगी.

v) ग्रामीण व्यापार उद्भवन (इंक्यूबेशन) केंद्र (आरबीआईसी)

मूल्य वर्धन और उत्पादकों तथा बाज़ारों को जोड़कर कृषि व्यापार में उच्च संभावनाओं वाले नवोन्मेषी उद्यमों को आरंभिक स्तर पर सहायता प्रदान करने के लिए नाबार्ड पात्र संस्थाओं को ग्रामीण व्यापार उद्भवन केन्द्रों की स्थापना के लिए सहायता प्रदान करता है. ये केंद्र चिह्नित क्षेत्रों में कृषि, अनुषंगी गतिविधियों और कृषीतर गतिविधियों में कार्यरत स्टार्ट-अप का उद्भवन करेंगे.

vi) उद्भवन केन्द्रों / नाबार्ड की सहायक कंपनियों को कैटेलिटिक पूंजी सहायता

कृषि और चिह्नित क्षेत्रों में नवोन्मेषी, प्रौद्योगिकी-आधारित व्यपार उद्यम की स्थापना और विकास के लिए नाबार्ड ने उद्भवन केन्द्रों (इंक्यूबेशन सेंटर्स) के माध्यम से स्टार्ट-अप्स को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए कैटेलिटिक पूंजी सहायता प्रदान करने की योजना शुरू की जिससे उद्यम निर्माण, अधिक रोजगार और निम्नलिखित मॉडल्स के माध्यम से सार्वजनिक और निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा. कैटेलिटिक पूंजी सहायता कृषि में नवोन्मेषी प्रौद्योगिकियों / उत्पाद / सेवाओं के विकास और वाणिज्यीकरण दोनों चरणों के बीच एक सेतु का कार्य करता है.

vii) विस्तृत परियोजना रिपोर्ट रूप में परियोजनाएं

कृषीतर क्षेत्र की विविधता की प्रकृति तथा देश के वंचित क्षेत्रों की आवश्यकतों को ध्यान में रखते हुए नाबार्ड ने वर्ष 2021-22 के दौरान विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तरीक़े से प्रायोगिक तौर पर स्थान विशिष्ट हस्तक्षेपों को सहायता देने का निर्णय किया. संतोषजनक प्रतिसाद प्राप्ति और प्रगति के बाद इस प्रायोगिक योजना को मुख्य धारा में लाने का निर्णय किया गया.

viii) सोशल स्टॉक एक्सचेंज के लिए क्षमता निर्माण निधि (सीबीएफ़-एसएसई)

भारत की माननीय वित्त मंत्री ने जुलाई 2019 के अपने बजट भाषण में समाज कल्याण के लिए कार्यरत सामाजिक उद्यमों और स्वैच्छिक संगठनों की लिस्टिंग के लिए भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) के अधीन सोशल स्टॉक एक्सचेंज (एसएसई) के गठन की घोषणा की जिससे वे इक्विटी, ऋण (डेट) या म्युचुअल फ़ंड जैसे यूनिट्स के रूप में पूंजी की उगाही कर सके. भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड अनुमोदित संरचना के अनुसार प्रतिभूति बाज़ार लिखतों (मार्केट इन्स्ट्रूमेंट्स) के लिए सोशल स्टॉक एक्सचेंज वर्तमान स्टॉक एक्सचेंजों पर एक अलग सेगमेंट होगा जिससे पात्र स्वैच्छिक संगठन पूंजी की उगाही कर सकेंगे.

ix) स्टैंड-अप इंडिया योजना

भारत सरकार ने 15 अगस्त 2016 को स्टैंड-अप (एसयूआई) योजना शुरू की. इस योजना में उद्यम की स्थापना के लिए प्रत्येक बैंक को अपनी एक बैंक शाखा में एक अनुसूचित जाति या एक अनुसूचित जनजाति के लाभार्थी और कम – से- कम महिला लाभार्थी को रु.10.00 लाख से रु.1.00 करोड़ तक के बैंक ऋण प्रदान करने की व्यवस्था की गई है.

यह भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) की योजना है और कनेक्ट सेंटर के रूप में लाभार्थियों को सहायता प्रदान करने दायित्व नाबार्ड को सौंपा गया है.

माननीय वित्त मंत्र ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में इस योजना को मार्च 2025 तक बढ़ाने की घोषणा की और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए स्टैंड अप इंडिया योजना के अधीन ऋण प्रवाह बढ़ाने के लिए कृषि अनुषंगी कार्यकलापों के लिए मार्जिन राशि आवश्यकता को 25% से घटा कर 15% करने का प्रस्ताव किया है.

x) विशेष क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना (एससीएलसीएसएस)

सूक्ष्म लघु और माध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति – अनुसूचित जनजाति हब (एनएसएसएच) के अधीन विशेष क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना शुरू की है. इस योजना का उद्देश्य नए उद्यमों की स्थापना का संवर्धन और सार्वजनिक ख़रीद में बेहतर भागीदारी के लिए वर्तमान उद्यमों की सहायता करना है. यह योजना विनिर्माण और सेवा गतिविधियों में संलग्न एकल स्वामित्व, साझेदारी, सहकारी समितियां, निजी और सार्वजनिक लिमिटेड कंपनियों के पात्र अनुसूचित जाति / जनजाति के सूक्ष्म और लघु उद्यमों पर लागू है. नाबार्ड योजना को कार्यान्वित करने वाली नोडल संस्थाओं में से एक है.

इस योजना के संबंध में अधिक जानकारी https://www.scsthub.in/content/special-credit-linked-capital-subsidy-scheme पोर्टल से प्राप्त की जा सकती है.

संपर्क सूचना

श्री पार्थो साहा
मुख्य महाप्रबंधक
पाँचवीं मंज़िल, ‘बी’ विंग,
सी – 24, 'जी' ब्लॉक
बांद्रा – कुर्ला संकुल,
बांद्रा (पूर्व) मुंबई - 400 051
दूरभाष : (91) 022-68120036
ई-मेल: ofdd@nabard.org

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